परमाणु को अविभाज्य मानना भी ग़लत है। दरअसल प्राचीन काल से भारतीय दर्शन में परमाणु का न टूटना बताया गया है और स्वामी जी के काल तक परमाणु को तोड़ना संभव नहीं हुआ था। इसलिए वह परमाणु को अविभाज्य लिख गए हैं परन्तु अब परमाणु को तोड़ना संभव है। विदेशी वैज्ञानिकों ने अपने विज्ञान से परमाणु को तोड़ डाला। भारत के वैज्ञानिकों ने उनसे यह विज्ञान सीखा। आज भारत में कई ‘परमाणु रिएक्टर’ इसी सिद्वान्त के अनुसार ऊर्जा उत्पादन करते हैं। परमाणु के टूटने के बाद स्वामी जी का परमाणु विज्ञान व्यर्थ और कल्पना मात्र सिद्ध हुआ। दरअसल यह कोई वैदिक सिद्धान्त नहीं है बल्कि एक दार्शनिक मत है। विदेशी वैज्ञानिकों ने जैसे अविष्कार बिना वेद पढ़े ही कर दिए हैं, आर्य समाजियों को अपने गुरूकुलों में वेद पढ़कर उनसे बड़े अविष्कार कर दिखाने थे। वे ऐसा कुछ नहीं कर पाए, सिवाए दूसरों की मज़ाक़ उड़ाने और डींग हाँकने के। परमाणु टूट गया लेकिन फिर भी वे दर्शन की उन पुरानी मान्यताओं को नहीं छोड़ पाए, जिन्हें भारतीय वैज्ञानिकों ने त्याग दिया है।
आग, पानी, हवा और पृथ्वी की संरचना का वर्णन भी विज्ञान विरूद्ध है। उदाहरणार्थ चार द्वयणुक अर्थात 8 अणुओं के मिलने से नहीं बल्कि हाइड्रोजन के 2 और ऑक्सीजन का 1 अणु, कुल 3 अणुओं के मिलने से जल बनता है। इसी तरह पृथ्वी भी पांच द्वयणुक से नहीं बनी है बल्कि कैल्शियम, कार्बन, मैग्नीज़ आदि बहुत से तत्वों से बनी है और हरेक तत्व की आण्विक संरचना अलग-अलग है। वायु के विषय में भी स्वामी जी का मत ग़लत है। वायु भी दो अणुओ से नहीं बनती। जो बात स्वामी जी ने जैनियों के विषय में कही है। वह स्वयं उन पर ही चरितार्थ हो रही है। देखिए-
(31) ‘स्थूल वात का भी यथावत ज्ञान नहीं तो परम सूक्ष्म सृष्टिविद्या का बोध कैसे हो सकता है?’ (सत्याथ प्रकाश, द्वादशसमुल्लास, पृष्ठ 294)
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
आग, पानी, हवा और पृथ्वी की संरचना का वर्णन भी विज्ञान विरूद्ध है। उदाहरणार्थ चार द्वयणुक अर्थात 8 अणुओं के मिलने से नहीं बल्कि हाइड्रोजन के 2 और ऑक्सीजन का 1 अणु, कुल 3 अणुओं के मिलने से जल बनता है। इसी तरह पृथ्वी भी पांच द्वयणुक से नहीं बनी है बल्कि कैल्शियम, कार्बन, मैग्नीज़ आदि बहुत से तत्वों से बनी है और हरेक तत्व की आण्विक संरचना अलग-अलग है। वायु के विषय में भी स्वामी जी का मत ग़लत है। वायु भी दो अणुओ से नहीं बनती। जो बात स्वामी जी ने जैनियों के विषय में कही है। वह स्वयं उन पर ही चरितार्थ हो रही है। देखिए-
(31) ‘स्थूल वात का भी यथावत ज्ञान नहीं तो परम सूक्ष्म सृष्टिविद्या का बोध कैसे हो सकता है?’ (सत्याथ प्रकाश, द्वादशसमुल्लास, पृष्ठ 294)
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डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
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