वास्तव में परम प्रशंसा, स्तुति और वन्दना उस परमेश्वर के लिए है जो
अपनी पैदा की हुई सारी चीज़ों का पालनहार है और उन्हें पूर्णता तक पहुंचाने
में सक्षम है। वह एक है। सबका मालिक वही एक है। सब चीज़ें उसी के नियमों के
अधीन हैं। यह परम सत्य है। आदिकाल से इस एक सत्य को विद्वानों ने बहुत से
अलंकारों से सुशोभित करते हुए कहा है।
जब युग बदले, भाषा बदली और विद्वान भी बदल गए। राजा बदले, प्रजा बदली और उनके देश भी बदल गए। सोच बदली और परम्पराएं भी बदल गईं। तब जो रूपक अलंकार थे, उन्हें कथा समझ लिया गया। अर्थ का अनर्थ हो गया। अधर्म के काम धर्म समझ लिए गए। राजा, प्रजा, और प्रकृति सबकी स्तुति होने लगी। सबको देवता समझ लिया गया। बाद के लोगों ने पुराना काव्य नये काव्य के साथ संकलित कर दिया तो देव की स्तुति के साथ देवताओं की स्तुति भी मिश्रित हो गई। नासमझी से उत्पन्न बहुदेववाद को चतुर लोगों ने मूर्तिपूजा का रूप देकर अपनी रोज़ी का जुगाड़ कर लिया। इस तरह धर्म का लोप हुआ और उसकी जगह अधर्म को दे दी गई। समाज के नीति-नियम यही अधर्मी बनाने लगे। इन्हीं अधर्मियों के कारण अत्याचार और युद्ध हुए और मानव जाति बर्बाद हो गई। दोष दिया गया निर्दोष धर्म को। विचारकों के मन को सवालों ने बेचैन किया तो धर्म का लोप करने वालों ने अध्यात्म से उन्हें भी शांत कर दिया। वे कहने लगे कि मन को विचारशून्य बना लो, परम शांति मिल जाएगी। तर्क त्याग दो, श्रद्धा उपलब्ध हो जाएगी।
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http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf
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डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है --
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
जब युग बदले, भाषा बदली और विद्वान भी बदल गए। राजा बदले, प्रजा बदली और उनके देश भी बदल गए। सोच बदली और परम्पराएं भी बदल गईं। तब जो रूपक अलंकार थे, उन्हें कथा समझ लिया गया। अर्थ का अनर्थ हो गया। अधर्म के काम धर्म समझ लिए गए। राजा, प्रजा, और प्रकृति सबकी स्तुति होने लगी। सबको देवता समझ लिया गया। बाद के लोगों ने पुराना काव्य नये काव्य के साथ संकलित कर दिया तो देव की स्तुति के साथ देवताओं की स्तुति भी मिश्रित हो गई। नासमझी से उत्पन्न बहुदेववाद को चतुर लोगों ने मूर्तिपूजा का रूप देकर अपनी रोज़ी का जुगाड़ कर लिया। इस तरह धर्म का लोप हुआ और उसकी जगह अधर्म को दे दी गई। समाज के नीति-नियम यही अधर्मी बनाने लगे। इन्हीं अधर्मियों के कारण अत्याचार और युद्ध हुए और मानव जाति बर्बाद हो गई। दोष दिया गया निर्दोष धर्म को। विचारकों के मन को सवालों ने बेचैन किया तो धर्म का लोप करने वालों ने अध्यात्म से उन्हें भी शांत कर दिया। वे कहने लगे कि मन को विचारशून्य बना लो, परम शांति मिल जाएगी। तर्क त्याग दो, श्रद्धा उपलब्ध हो जाएगी।
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http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf
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डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है --
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