Wednesday, September 7, 2016

सब्ज़ियां खाने से जीव को पीड़ा नहीं होती?

इतिहास की तरह जीव विज्ञान के विषय में स्वामी जी की मान्यताएं ठीक नहीं हैं। वह कहते हैं-
‘...हरित ‘शाक के खाने में जीव का मारना उनको पीड़ा पहुंचनी क्योंकर मानते हो? भला जब तुमको पीड़ा प्राप्त होती प्रत्यक्ष नहीं दिखती और जो दिखती तो हमको दिखलाओ।’ ( देखें सत्यार्थप्रकाश, द्वादशमसमुल्लास, पृष्‍ठ 369)
(42) आज पहली क्लास का बच्चा भी जानता है कि पेड़-पौधे जीवित वस्तुओं ;स्पअपदह जीपदहेद्ध में आते हैं। सब्ज़ी खाने से उन पर निवास करने वाले जीव भी मरते हैं। यह एक सच्चाई है। खाने के लिए गाजर-मूली को ज़मीन से खोद कर निकाला जाता है। तब वे भी मर जाती हैं और उन्हें पीड़ा भी होती है। इस वैज्ञानिक सत्य को झुठलाना ज्ञान कहा जायेगा अथवा अज्ञान?
दूसरों पर ऐतराज़ करने की जल्दी में स्वामी जी अपनी मान्यता भी भूल गए कि
‘स्वामी जी ने मनुष्य, पशु और वनस्पति आदि में जीव एक ही माना है।’ ( देखें सत्यार्थप्रकाश, नवम., पृ.170)
यह बात मान ली जाए तो मूली काटना भी आदमी की गर्दन काटने के बराबर का ही जुर्म ठहरता है और दोनों कामों पर एक ही धारा लगनी चाहिए और एक ही सज़ा मिलनी चाहिए। पेड़-पौधों पर अनगिनत सूक्ष्म जीवाणु भी वास करते हैं। सब्ज़ियां खाने से वे भी मरते हैं। मक्खी और मच्छर के क़त्ल पर भी वही सज़ा मिलने लगे जो कि आदमी को क़त्ल करने पर मिलती है तो आर्य समाजी भाई स्वयं ही कहने लगेंगे कि आवागमन नहीं होता।
(43) अगर मनुष्य, पशु और सब्ज़ी में जीव एक ही है तो फिर उन सबके जीवन का अंत करना बराबर का अपराध क्यों नहीं माना जाता?
(44) क्या ऐसा करके मनुष्य समाज एक मिनट के लिए भी ज़िन्दा रह सकता है?
आवागमन की मान्यता के अनुसार जो सब्ज़ियाँ और छोटे बड़े जीव अब नज़र आ रहे हैं, ये सब पहले कभी मनुष्य हुआ करते थे। वे मनुष्य ही मर कर अपने पाप भुगतने के लिए इन योनियों में पैदा हो गए हैं। केवल रूप रंग बदला है, इनमें आत्मा वही माननी पड़ेगी। ऐसे में यह डर बना रहता है कि जिस आलू को हम छील रहे हैं, कहीं यह हमारे माता-पिता ही न हों?
    हमारे माता पिता न भी हों तब भी वे किसी न किसी मनुष्य के माता पिता या बच्चे तो हैं ही, यह निश्चित है। आवागमन को माना जाए तो शाकाहारी भी आदमख़ोर ठहरते हैं। इस अपराध बोध से आदमी तभी बच सकता है, जबकि वह आवागमन को असत्य मान ले।

-- --Book Download Link--
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है

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