क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तिस्मनदृष्टि पराऽवरे ।।1।।मुण्डक।।
जब इस जीव के हृदय की अविद्या रूपी गांठ कट जाती, सब संशय छिन्न होते और दुष्ट कर्म क्षय को प्राप्त होते हैं। तभी उस परमात्मा जो कि अपने आत्मा के भीतर और बाहर व्याप रहा है, उसमें निवास करता है। (सत्यार्थ प्रकाश, नवम0, पृष्ठ 171)
ईश्वर का सामीप्य पाने के लिए यहां तीन बातों पर बल दिया गया है-
जीव के हृदय की अविद्या रूपी गांठ कट जाती है।
सब संशय छिन्न होते हैं।
सब दुष्ट कर्म क्षय को प्राप्त होते हैं।
(15) क्या स्वामी दयानन्द जी ने दुष्टों को क्षमा करके और उन्हें तहसीलदार आदि अधिकारियों के दण्ड से छुड़वाकर दुष्टों का उत्साहवर्धन नहीं किया?
यदि यह सही है तो स्वामी दयानन्द जी में उपरोक्त तीसरे बिन्दु वाली विशेषता दृष्टिगोचर नहीं होती ।
(16) न ही उनके सब संशय छिन्न हो सके थे क्योंकि वह स्वयं ही एक सिद्धान्त निश्चित करते हैं और जब आर्य सभासद उसका पालन करते हैं तो फिर स्वयं ही उन्हें दुष्टों को दण्ड न देने की बात कहते हैं। यह उनके संशयग्रस्त होने का स्पष्ट उदाहरण है या नहीं?
(17) क्या यह अविद्या की बात न कही जाएगी कि एक आदमी सारे जगत को उस बात का उपदेश करे जिस पर न तो स्वयं उस को विश्वास हो और न ही उस पर आचरण करे जैसे कि उपरोक्त दुष्टों को क्षमा न करने का उपदेश करना और स्वयं लगातार क्षमा करते रहना?
भिद्यते हृदयग्रिन्थरिद्दद्यन्ते सर्वसंशयाः ।जब इस जीव के हृदय की अविद्या रूपी गांठ कट जाती, सब संशय छिन्न होते और दुष्ट कर्म क्षय को प्राप्त होते हैं। तभी उस परमात्मा जो कि अपने आत्मा के भीतर और बाहर व्याप रहा है, उसमें निवास करता है। (सत्यार्थ प्रकाश, नवम0, पृष्ठ 171)
ईश्वर का सामीप्य पाने के लिए यहां तीन बातों पर बल दिया गया है-
जीव के हृदय की अविद्या रूपी गांठ कट जाती है।
सब संशय छिन्न होते हैं।
सब दुष्ट कर्म क्षय को प्राप्त होते हैं।
(15) क्या स्वामी दयानन्द जी ने दुष्टों को क्षमा करके और उन्हें तहसीलदार आदि अधिकारियों के दण्ड से छुड़वाकर दुष्टों का उत्साहवर्धन नहीं किया?
यदि यह सही है तो स्वामी दयानन्द जी में उपरोक्त तीसरे बिन्दु वाली विशेषता दृष्टिगोचर नहीं होती ।
(16) न ही उनके सब संशय छिन्न हो सके थे क्योंकि वह स्वयं ही एक सिद्धान्त निश्चित करते हैं और जब आर्य सभासद उसका पालन करते हैं तो फिर स्वयं ही उन्हें दुष्टों को दण्ड न देने की बात कहते हैं। यह उनके संशयग्रस्त होने का स्पष्ट उदाहरण है या नहीं?
(17) क्या यह अविद्या की बात न कही जाएगी कि एक आदमी सारे जगत को उस बात का उपदेश करे जिस पर न तो स्वयं उस को विश्वास हो और न ही उस पर आचरण करे जैसे कि उपरोक्त दुष्टों को क्षमा न करने का उपदेश करना और स्वयं लगातार क्षमा करते रहना?
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
--
पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
No comments:
Post a Comment