Wednesday, September 7, 2016

वेदों की रचना के समय का निर्णय वेदों के आधार पर

वास्तव में वेद स्वयं बताते हैं कि वे कब रचे गए ?
    वेदों के अध्ययन से पता चलता है कि जब मनुष्य ने वेदों को प्राप्त किया, तब असुर व दस्यु आदि वर्तमान थे और वे आर्यों से युद्ध करते रहते थे। इनका वर्णन वेदों में आया है। स्वामी जी ने मनु स्मृति के आधार पर बताया है कि
    ‘आर्य्यवर्त से भिन्न पूर्व देश से लेकर ईरान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम देशों में रहने वालों का नाम दस्यु, म्लेच्छ और असुर है’ (सत्यार्थप्रकाश, अष्टमसमुल्लास, पृष्ठ 152)
    अतः सिद्ध होता है कि जब ईरान तथा पश्चिमी देशों में मनुष्य निवास करने लगे, उसके बाद मनुष्यों को वेद प्राप्त हुए, उससे पहले नहीं। एक नगर को बसने में ही कई सौ वर्ष लग जाते हैं। किसी एक जगह पैदा होने के बाद मनुष्यों को इतनी दूर दूर जाने में और इतने सारे देश बसाने में कितने हज़ार वर्ष लग गए होंगे।
    स्वामी जी स्वयं कहते हैं-
    ‘एतद्देशस्य प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः। स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।।मनु.।।
सृष्टि से ले के पांच सहò वर्षों से पूर्व समय पर्यन्त आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती अर्थात् भूगोल में सर्वोपरि एकमात्र राज्य था। अन्य देश में माण्डलिक अर्थात् छोटे छोटे राजा रहते थे क्योंकि कौरव पाण्डव पर्यन्त यहां के राज्य और राजशासन में भूगोल के सब राजा और प्रजा चले थे क्योंकि यह मनुस्मृति जो सृष्टि की आदि में हुई है उसका प्रमाण है।’ सत्यार्थप्रकाश, एकादशसमुल्लास,पृ.187)
    स्वामी जी के कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि जिस समय मनुष्य को वेद और मनुस्मृति मिले, उस समय सारी पृथ्वी पर बहुत से देश और राजा थे। सारी धरती पर प्रजा का पालन हो रहा था। जिस काल में यह सब हो रहा था, उसे सृष्टि का आदि कहना ग़लत है। अतः वेदों की भांति मनुस्मृति का भी सृष्टि के आदि में होने की बात कहना ग़लत है।
     इससे पता चलता है कि वेद मनुष्य को सृष्टि के आदि में नहीं मिले वरन तब मिले जबकि दुनिया में बहुत से देश और बहुत सी सभ्यताएं बन चुकी थीं। उनकी भाषाएं, संस्कृतियां और मान्यताएं भी आर्यों से अलग थीं। उनके पास राजा, सेना और हथियार आदि सब कुछ था और उन्होंने यह सब उन्नति वेद के आने से पहले ही कर ली थी। वेद के दुनिया में आने से पहले ही बहुत तरह की विद्या का प्रकाश असुर आदि मनुष्यों में हो चुका था। जिनका ज़िक्र वेदों में मिलता है।
    अतः स्वामी दयानंद जी का यह कहना भी ग़लत है कि
    ‘यह निश्चय है कि जितनी विद्या और मत भूगोल में फैले हैं वे सब आर्य्यवर्त देश ही से प्रचारित हुए हैं।‘ (सत्यार्थप्रकाश, एकादशसमुल्लास, पृष्ठ 189)
    सारी दुनिया में विद्या यहां से फैलती तो वेद और मनुस्मृति भी पूरी दुनिया में फैल चुके होते और संस्कृत भाषा विश्व भर में बोली जाती, जैसे कि आज अंग्रेज़ी बोली जाती है। वर्ण व्यवस्था और छूतछात भी दुनिया में फैली हुई मिलती लेकिन दुनिया के सब देशों में इन सबका कहीं पता नहीं मिलता। यहां से विद्या दुनिया में तो क्या फैलती, यहां भी न फैल पाई। वेद-उपनिषदों को दुनिया के सामने मुसलमान और ईसाई भाई लाए। दाराशिकोह ने मजमउल-बहरैन के नाम से फ़ारसी में उपनिषदों का अनुवाद करवाया। तब दुनिया ने उन्हें पढ़ा। मैक्समूलर ने दुनिया को वेदों से परिचित करवाया। उसे भी भारत में बड़ी परेशानियां झेलने और काफ़ी माल ख़र्च करने के बाद वेद मिले। स्वयं स्वामी जी को भी भारत में वेद न मिले, जर्मनी से मंगाने पड़े।


-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
 http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html

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