न तुम सदमा हमें देते न हम फरियाद यूं करते
न खुलते राज़ सरबस्ता न ये रूसवाईयां होतीं
झूठे और मक्कारों से कोई बहस में नहीं जीत सकता?,,, इस लिए ही वो कहते हैं इसको हराया उसको हरा दूंगा,,,जिस जाकिर नायक की अब्दुल्ला तारिक से कभी मुशाफा होना भी साबित नहीं,, उसे उनका चेला बना दिया,,, और जिसको अपने अमन के प्रोगराम में बुलाया था,,, उस अकेले को अपनी-अपनी सुना कर कहते हैं,,, जाकिर नायक के गुरू को हराया,, ,जबकि वो इन्ट्नेशनल हस्ती खुद बता रही है मेरा गुरू कौन हैं,
How Deedat Made Me Daaee - Dr. Zakir Naik
,,बिना सबूत के उसकी न सुनके यह तय करते हैं उसका गुरू कौन हैं ,,,जो खुद को पूर्व इमाम बताते हैं वो यह भी तो आर्यों को बता दें कि हर दूसरा मुसलमान इमाम हो सकता है,,,,, घर हो या मस्जिद हो या मैदान जहां दो नमाजी होंगे उनमें जो इबादत में बहतर होगा वो इमाम हो सकता है,,,,,, यह कुल काबलियत है जनाब की,,,, जनाब पर अल्लाह करे पिछली तारीख दोहरायी जाए, आमीन
,, अर्थात ,
11 साल आर्यसमाज की तरफ से एक मुसलमान धर्मपाल बनके लडता रहा (1903से1914), जिसकी 3 उर्दू किताबें आनलाइन हैं, जिसको जवाब दी गयी 2 किताबों के जवाब आनलाइन हैं,,,जिसकी Tagleeb ul Islam– 4-Volume 2000 प़ष्ठों की किताब का लगभग इतने ही प़ष्ठों में Tehzeeb ul Islam नाम से मौलाना सनाउल्लाह ने जवाब दिया, जिसकी एक किताब अब आपको हिन्दी में भी हासिल है,, ऐसी हस्ती को तारीख से मिटा कर आज के आर्य पंडित एक सांस में होने का इन्कार करते हैं तो दूसरी सांस में खुद ही एक और सबूत दे देते हैं-
पंडित महिंद्रपाल जी अपने सवालों के जवाब के जवाब में जिस बारे को उनसे कह दिया गया,, क्रम से अर्थात 15 सवालों के न्म्बर से जवाब दें,,,, जैसे की लाजवाब पुस्तक ''हक प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश'' में 159 सवालों के नम्बर से जवाब दिए गए हैं
उसमें पृष्ठ 5 पर लिखी यह लाइनें पढें,,,
आर्य जगत के एक जाने माने विद्वान शास्त्रार्थ महारथी प. शांति प्रकाश जी ने मुझ उनकी एक घटना सुनाई थी, प जी ने बताया की धर्मपाल जी ने आर्य समाज के अधिकारियों को चुनौती दी शास्त्रार्थ के लिए.... तो सभी ने मुझे भेज दिया, धर्मपाल जी ने कहा प. जी में आप से नहीं इन अधिकारियों से शास्त्रार्थ करना चाहता हूंदूसरी बात पंडित जी को यकीन नहीं हो रहा,,,, कि उन्होंने गाजी महमूद के सवाल दोहराए हैं,,, वाकई 12 सवाल गाजी महमूद की किताब से थे न विश्वास हो तो इधर आपको उर्दू में दिए 15 सवालों के जवाब में देखें, First Response Mahendra-Pal
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/59335277-Response-Mahindrapal-Arya-Sawalon-Ke-Jawab
गाजी महमूद धर्मपाल बी.ए. 1923 ई.
गाज़ी की आनलाइन उर्दूहिन्दी पुस्तक ‘वेद और स्वामी दयानन्द’
Ved -Swami Dayanand -ghazi Mehmud Dharmpal (Ex-Arya pandit) Hindi Book
आपकी आनलाइन दूसरी किताबें हैं ,,, (1)कुफर तोड,,,Urdu:>
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/58878604-kufr-tod-ghazi-mehmud-dharmpal-arya-pandit-Ex
(2)बुत शिकन,,,,,
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/62075450-But-Shikan-%D8%A8%D8%AA-%D8%B4%DA%A9%D9%86
بت شکن
आपको मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी ने महमूद के 115 सवालों के जवाब में लिखी जब महमूद आर्य समाजी धर्मपाल थे,,,
(3)तुर्के इस्लाम बजवाब तर्के इस्लाम,,,,,,
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/41806300-Turk-e-Islam-Sanaullah-Amratsari
(4)तबर्र इस्लाम बजवाब नखले इस्लाम,,
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/41845917-Tabrra-e-Islam-Sanaullah-Amratsari
(5) ‘वेद और स्वामी दयानन्द’ हिन्दी
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/57826205-Ved-Swami-Dayanand-ghazi-Mehmud-Dharmpal-Ex-Arya-pandit-Hindi-Book
(5) वेद और स्वामी दयानन्द’ उर्दू
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तीसरी बात आपने कही की गाजी की किताबें किसी ने कहा था वो उन्हें पहुचाएगा मगर पहुंचायी नहीं,,, अब आपकी जानकारी में यह सब किताबें आनलाइन हैं,,,कोई भी कहीं भी हासिल कर सकता है वो भी बिना रसीदी जवाब दिए
चौथी बात
उप-राष्ट्रपति ने जो कहा होगा वो तो आप जानें लेकिन राष्ट्रपिता ने किया कहा वो आप अब जरूर जान लेंगें ,,,, ,
- गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-
- ‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं। (अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920)
पांचजी बात
दयानंद जी के आने पर
मुसलमान के भागने की बात पर कैसे यकीन कर लें जबकि हम शाहजहांपुर की रोदाद पढ
चुके,,,
MUBAHISA E SHAHJAHANPUR (MAULANA QASIM WITH DAYANAND JI ) مباحثہ شاجہانپور
''हक प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश'' जो मौलाना सनाउल्ला अमृतसरी की 5-7 महीनों के नतीजा हो सकती है का 112 साल में जवाब आर्य समाज से न बन सका, फिर जो किताब 45 साल की महनत से तैयार की गयी हो उसके जवाब की उम्मीद आर्यसमाज से करना बेवकुफी होगी, देखें गुलाम हसनैन की आनलाइन उर्दू में पुस्तक ''स्वामी दयानंद और उनकी तालीम''
परिचय- ''स्वामी दयानंद और उनकी तालीम''
लेखक गुलाम हसनैन की 45 वर्ष की महनत का नतीजा 1933 में प्रकाशित यह पुस्तक अब आनलाइन उपलब्ध
--बहुत समय से इस बात की जरूरत महसूस हो रही थी कि तहकीकी अन्दाज़ में एक मुकम्मल, विस्तृत और दलीलों के साथ(तर्कयुक्त) किताब लिखी जाए, जिसमें आर्य धर्म की शिक्षाएं अपने असली रंग में और उसके संस्थापक के ज़ाती हालात तन्कीद(आलोचना) की रोशनी में दरज किए जाएं, मगर यह काम हर किसी का न था, बल्कि इसके लिए खास काबलियत, बेहद अध्ययन और बहुत तलाश और तहकीक की ज़रूरत थी, और यह काम सालहा साल की फुरसत को चाहता था, खुदा जज़ाए खेर दे मौलाना खाजा गुलाम अलहसनैन साहब को कि उन्होंने इस अज़ीमुश्शान काम का बेडा उठाया और अपनी उमर का एक बेशबहा हिस्सा यानि लगभग 45 साल निहायत सबर और खामोशी के साथ मज़हब के अध्ययन में खर्च कर दिए, इस मकसद के लिए एक बडी लाइब्रेरी कायम की और आर्य समाज के सम्बन्ध में जो कुछ जहां से मिल सका, हासिल करने में तलाश का कोई दकीका (सूक्षमता,मामूली सा रास्ता भी) बाकी नहीं छोडा, इस लगाता और मुसलसल कोशिश का नतीजा मौजूदा किताब की शकल में आज आपके सामने(आनलाइन) है जाहिर है कि जो किताब इस कदर जानतोड महनत के लिखी जाए वो किस बुलंद दरजे की होगी, ब्यान की दिलचस्पी, दलीलों की मजबूती, और तरीके इस्तदलाल(विवेचन) की उमदगी के लिहाज़ से यह किताब अपना जवाब नहीं रखती, मगर इसका सबसे बडा कमाल यह है कि सारी किताब को पढ जाने के बाद भी आपो इसमें कोई शब्द सख्त, उत्तेजित अर्थात भडकाने वाला नहीं मिलेगा, इस किसम की दूसरी आम किताबों बरखिलाफ इस किताब का लहजा इतना नर्म इतना मुहज्ज़ब और इस कदर संजीदा है कि बेइख्तियार लेखक की खुदादाद कुदरते तहरीर और शराफते तबियत की दाद देनी पडती है, फिर लिखने का अंदाज़ इतना सलीस औ आम फहम है कि मामूली लियाकत का आदमी भी तमाम मतालिबे किताब को बखूबी समझ सकता है, इस किताब का दूसरा कमाल इसकी किताब का अंदाज है कि सफा पर नज़र पडते ही तमाम मज़मून का खाका ज़हन नशीं हो जाता है, असल किताब से कता नज़र इस की विषय सूची, इसकी मुकददमा(भूमिका), इसकी जमीमे(परिशिस्ट), और इसका इन्डेक्स भी बे इन्तिहा काबिले कदर चीज हैं, मुख्तसर यह कि बानी (संस्थापक) आर्य समाज की प्राइवेट और पब्लिक लाइफ का यह किताब ऐसा बहतरीन प्रतिरूप है जिस में उनकी असली और पूरी तस्वीर हर पाठका को बिल्कुल साफ नजर आएगी,अलावा मजहबी हैसियत के यह किताब सियासी लिहाज़ से भी खास अहमियत रखती है, मुलक का सियायत पसंद तबका जिस समय सियासी नुक्ता ए नजर से इसको पढेगा तो उस पर बहुत से हैरत अंगेज राज मुन्कफ होंगे, तारीखी एतबार से भी इस किताब को खास हैसियत हासिल है, फन-ए-तारीख के शौकीन इसके अध्ययन से कुछ ऐसे अजीब नुक्ते मालूम करेंगे जो अबतक परदा राज़ में थे, गर्ज़ किताब किया है मजहबी लिट्रेचर में एक मुखतसर सा इन्साइकिलोपीडिया है, खुदा ताला हर शखस को अपने अपने शौक के मुताबिक इससे फायदा उठाने की तौफीक बखशे, आमीन
शेख मुहम्मद इस्माईल पानीपती (4 दिसम्बर 1932 ई़)
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बिस्मिल्लाह
''जिस प्रकार प्राचीन काल के विद्वान तुम्हारे पूर्वज समस्त विद्याओं के माहिर गुजर चुके हैं मुझ कादिर मुतलक ईश्वर के आदेश का पालन करते रहे हैं तुम भी उसी धर्म के पाबंद रहो ताकि वेद में बताए हुए धर्म का तुम को निस्संदेह ज्ञान हो जाए। (ऋगवेद अशटक 8 अध्याय8)इस वाक्य से साफ समझ में आता कि वेद किसी ऐसे युग में बना है कि उस दौर की दुनिया की आबादी इतनी अधिक हो चुकी थी कि उस समय के मौजूदा लोगों को गुजर चुके विद्याओं के माहिर बुजुर्गों के हाल से विद्या ग्रहण करने की आवश्यकता पडती थी।
अब बताइए जब वेद से पहले कोई जमाना नहीं तो तो फिर वेद में ऐसे क्यूं कहा जा रहा है?
ईश्वरीय
किताबों का मुहावरा और कलाम की शैली कई प्रकार की होती है कभी तो ईश्वर स्वयं बात
कहने के रूप में अपना आदेश स्पष्ट करता है कभी गायब से और कभी कोई ऐसा मतलब जो
दुआ या निवेदन के रूप में बंदों को सिखाना अपेक्षित हो उसे बन्दों की ज़बान से
व्यक्त कराया जाता है।
यदि ऋगवेद
मंत्र 1 को देख लेते तो यह बेजा आपत्ती न कर पाते ा
समाजियों
तनिक ध्यान से सुनो1
''हम लोग इस अग्नि की प्रशंसा करते है। जो कि हमारा पूरा हित करने वाली यज्ञों की हवन करने वाली, रौशन मौसमों को बदलने वाली, समस्त तत्वों का पैदा करने वाली है।''
बताओ! यह
अग्नि से (आपके कथनुसार) ईश्वर ही तात्पर्य है और वेद भी ईश्वर का कलाम है तो
उस कलाम को मानने वाला कौन है?
इसके अलावा
यह भी देखें यजुर्वेद अध्याय 21 मंत्र 18, ऋगवेद अष्टक 6 अध्याय1 वरग मन्त्र 6
न. 5 और यजुर्वेद अध्याय 32 मन्त्र 14 आदि
स्वामी
दयानंद का कहना था कि ''आरंभ वास्ते हिदायत मनुष्यों के ऐसा कहता'' इससे पता चलता
है कि उन्हें शब्द आरंभ पर एतराज न था क्यूंकि इस शब्द पर आपत्ती होती तो
करक्शन के मशवरे में शब्द आरंभ क्यूं लाते,,
कुरआन का
अनुवाद को सरल किया जाता है जबकि आर्यसमाज काटछांट करता रहा है, सत्यार्थ प्रकाश
लिखने के समय में बिस्मिल्लाह का अनुवाद उर्दू में ऐसे था, जिसे दयानंद जी ने
उर्दू से हिन्दी में करवाकर पढा
''आरंभ
अल्लाह के नाम के साथ क्षमा करने वाले क.पालु के
फिर पिछले
कुछ समय जो उर्दू अनुवाद आप देख रहे हैं सरल किया गया है,
शुरू करता
हूं अल्लाह के नाम से
फिर
आजकल
अल्लाह के
नाम से जो............
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न तुम सदमा हमें देते न हम फरियाद यूं करते
न खुलते राज़ सरबस्ता न ये रूसवाईयां होतीं
आप ही अपने ज़रा, ज़ोरो सितम को देखें
हम अगर अर्ज़ करेंगे तो शिकायत होगी
उलटी समझ किसी को भी ऐसी खुदा ने
दे आदमी को मौत, प ये बद अदा न दे
मुश्किल बहुत पडेगी बराबर की चोट है
आईना देखिएगा ज़रा देख-भाल के
न खंजर उठेगा न तलवार इनसे
यह बाज़ू मेरे आज़माए हुए हैं
मानो न मानो जान-ए-जहां इख्तियार है
हम नेक व बद हुज़ूर का समझाए जाते है
फिरे ज़माना, फिरे आसमां, हवा फिर जाए
'दया' से, हम न फिरें, हम से गो ख़ुदा फिर जाए
इधर आ प्यारे हुनर आ़जमाएं
तू तीर आज़मा हम जिगर आज़माएं
कुछ जवानी है अभी कुछ है लडकपन इनका
दो जफाकरों के कब्ज़े में है यौवन इनका