Wednesday, June 13, 2012

आर्य समाजी पंडित महिंदृपाल जी को दूसरा जवाब


 तुम सदमा हमें देते  हम फरियाद यूं करते
 खुलते राज़ सरबस्‍ता  ये रूसवाईयां होतीं


झूठे और मक्‍कारों से कोई बहस में नहीं जीत सकता?,,, इस लिए ही वो कहते हैं इसको हराया उसको हरा दूंगा,,,जिस जाकिर नायक की अब्‍दुल्‍ला तारिक से कभी मुशाफा होना भी साबित नहीं,, उसे उनका चेला बना दिया,,, और जिसको अपने अमन के प्रोगराम में बुलाया था,,, उस अकेले को अपनी-अपनी  सुना कर कहते हैं,,, जाकिर नायक के गुरू को हराया,, ,जबकि वो इन्‍ट्नेशनल हस्‍ती खुद बता रही है मेरा गुरू कौन हैं,

How Deedat Made Me Daaee - Dr. Zakir Naik

,,बिना सबूत के उसकी न सुनके यह तय करते हैं उसका गुरू कौन हैं ,,,
जो खुद को पूर्व इमाम बताते हैं वो यह भी तो आर्यों को बता दें कि हर दूसरा मुसलमान इमाम हो सकता है,,,,,  घर हो या मस्जिद हो या मैदान जहां दो नमाजी होंगे उनमें जो इबादत में बहतर होगा वो इमाम हो सकता है,,,,,, यह कुल काबलियत  है जनाब की,,,,  जनाब पर अल्‍लाह करे पिछली तारीख दोहरायी जाए, आमीन
,, अर्थात  ,

11 साल आर्यसमाज की तरफ से एक मुसलमान  धर्मपाल बनके लडता रहा (1903से1914), जिसकी 3 उर्दू किताबें आनलाइन हैं, जिसको जवाब दी गयी 2 किताबों के जवाब आनलाइन हैं,,,जिसकी Tagleeb ul Islam– 4-Volume 2000 प़ष्‍ठों की किताब का लगभग इतने ही प़ष्‍ठों में Tehzeeb ul Islam नाम से मौलाना सनाउल्‍लाह ने जवाब दिया, जिसकी एक किताब अब आपको हिन्‍दी में भी हासिल है,, ऐसी हस्‍ती को तारीख से मिटा कर आज के आर्य पंडित एक सांस में होने का इन्‍कार करते हैं तो दूसरी सांस में खुद ही एक और सबूत दे देते हैं-

पंडित महिंद्रपाल जी अपने सवालों के जवाब के जवाब में  जिस बारे  को उनसे कह दिया गया,, क्रम से अर्थात 15 सवालों के न्‍म्‍बर से जवाब दें,,,, जैसे की लाजवाब पुस्‍तक ''हक प्रकाश बजवाब सत्‍यार्थ प्रकाश''  में 159 सवालों के नम्‍बर से जवाब दिए गए हैं



उसमें  पृष्‍ठ  5 पर लिखी यह लाइनें पढें,,,


आर्य जगत के एक जाने माने विद्वान शास्‍त्रार्थ महारथी प. शांति प्रकाश जी ने मुझ उनकी एक घटना सुनाई थी, प जी ने बताया की धर्मपाल जी ने आर्य समाज के अधिकारियों को चुनौती दी शास्‍त्रार्थ के लिए.... तो सभी ने मुझे भेज दिया, धर्मपाल जी ने कहा प. जी में आप से नहीं इन अधिकारियों से शास्‍त्रार्थ करना चाहता हूं 
दूसरी बात पंडित जी को यकीन नहीं हो रहा,,,, कि उन्‍होंने गाजी महमूद के सवाल दोहराए हैं,,, वाकई 12 सवाल  गाजी महमूद की किताब से थे न विश्‍वास हो तो इधर आपको उर्दू में दिए 15 सवालों के जवाब में देखें,  First Response Mahendra-Pal
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/59335277-Response-Mahindrapal-Arya-Sawalon-Ke-Jawab


गाजी महमूद धर्मपाल बी.ए. 1923 ई. 
गाज़ी की आनलाइन  उर्दूहिन्दी पुस्तक ‘वेद और स्वामी दयानन्द’
Ved -Swami Dayanand -ghazi Mehmud Dharmpal (Ex-Arya pandit) Hindi Book
आपकी आनलाइन दूसरी किताबें हैं ,,, (1)कुफर तोड,,,Urdu:>

http://www.scribd.com/iqbalseth/d/58878604-kufr-tod-ghazi-mehmud-dharmpal-arya-pandit-Ex

 (2)बुत शिकन,,,,,

http://www.scribd.com/iqbalseth/d/62075450-But-Shikan-%D8%A8%D8%AA-%D8%B4%DA%A9%D9%86

بت شکن




आपको मौलाना सनाउल्‍लाह अमृतसरी ने महमूद के 115 सवालों के जवाब में लिखी जब महमूद आर्य समाजी धर्मपाल थे,,,

(3)तुर्के  इस्‍लाम बजवाब  तर्के  इस्‍लाम,,,,,,
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/41806300-Turk-e-Islam-Sanaullah-Amratsari

(4)तबर्र इस्‍लाम बजवाब नखले इस्‍लाम,,
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/41845917-Tabrra-e-Islam-Sanaullah-Amratsari


(5)  ‘वेद और स्वामी दयानन्द’ हिन्दी 
http://www.scribd.com/iqbalseth/d/57826205-Ved-Swami-Dayanand-ghazi-Mehmud-Dharmpal-Ex-Arya-pandit-Hindi-Book

(5)  वेद और स्वामी दयानन्द’   उर्दू


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तीसरी बात आपने कही की गाजी की किताबें किसी ने कहा था वो उन्‍हें पहुचाएगा मगर पहुंचायी नहीं,,, अब आपकी जानकारी में यह सब किताबें आनलाइन हैं,,,कोई भी कहीं भी हासिल कर सकता है वो भी बिना रसीदी जवाब दिए


चौथी बात
उप-राष्‍ट्रपति ने जो कहा होगा वो तो आप जानें लेकिन राष्‍ट्रपिता ने किया कहा वो आप अब जरूर जान लेंगें ,,,, ,
  • गांधी जी अपने अख़बार ‘यंग इंडिया‘ में लिखते हैं-
  • ‘‘मेरे दिल में दयानन्द सरस्वती के लिए भारी सम्मान है। मैं सोचा करता हूं कि उन्होंने हिन्दू धर्म की भारी सेवा की है। उनकी बहादुरी में सन्देह नहीं लेकिन उन्होंने अपने धर्म को तंग बना दिया है। मैंने आर्य समाजियों की सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा है, जब मैं यर्वदा जेल में आराम कर रहा था। मेरे दोस्तों ने इसकी तीन कापियां मेरे पास भेजी थीं। मैंने इतने बड़े रिफ़ार्मर की लिखी इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी। स्वामी दयानन्द ने सत्य और केवल सत्य पर खड़े होने का दावा किया है लेकिन उन्होंने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है। जिस व्यक्ति को इन धर्मों का थोड़ा सा भी ज्ञान है वह आसानी से इन ग़लतियों को मालूम कर सकता है, जिनमें इस उच्च रिफ़ार्मर को डाला गया है। उन्होंने इस धरती पर अत्यन्त उत्तम और स्वतंत्र धर्मों में से एक को तंग बनाने की चेष्टा की है। यद्यपि मूर्तिपूजा के विरूद्ध थे लेकिन वे बड़ी बारीकी के साथ मूर्ति पूजा का बोलबाला करने में सफल हुए क्योंकि उन्होंने वेदों के शब्दों की मूर्ति बना दी है और वेदों में हरेक ज्ञान को विज्ञान से साबित करने की चेष्टा की है। मेरी राय में आर्य समाज सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं की विशेषता के कारण प्रगति नहीं कर रहा है बल्कि अपने संस्थापक के उच्च आचरण के कारण कर रहा है। आप जहां कहीं भी आर्य समाजियों को पाएंगे वहां ही जीवन की सरगर्मी मौजूद होगी। तंग और लड़ाई की आदत के कारण वे या तो धर्मों के लोगों से लड़ते रहते हैं और यदि ऐसा न कर सकें तो एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहते हैं।   (अख़बार प्रताप 4 जून 1924, अख़बार यंग इंडिया, अहमदाबाद 29 मई 1920) 


पांचजी बात
दयानंद जी के आने पर मुसलमान के भागने की बात पर कैसे यकीन कर लें जबकि हम शाहजहांपुर की रोदाद पढ चुके,,, 

MUBAHISA E SHAHJAHANPUR (MAULANA QASIM WITH DAYANAND JI ) مباحثہ شاجہانپور

इस तीन धृर्मों के मुबाहिसे की रोदाद को पढेंगे तो पता चलेगा दयानंद जी, जितनी हिंदी तब तक सीख चुके थे वो भी भूल गए,, उर्दू हिन्‍दी वाली पटटी में संस्‍क़त के अलावा कुछ बोल ही नहीं पाए,,, जिससे उनको किसी बात का जवाब दिया जासके या वार्तालाप किया जा सके,,,,,  खेर इस बात ने उनकी इस इलाके में उनकी खूब भद पिटवायी जिसे आप कहेंगे समझदारी दिखायी,, क्‍यूं की तीसरी पार्टी ईसाईयों का जो हाल हुआ वो तो पढके जानें और अपने भाईयों को सुनाएं,,,,
आर्यसमाजी भाषा की बात हजम नहीं करेगा तो जानले सत्‍यार्थ प्रकाश पर कुछ समय पहले 1000 विद्वानों को प्रूफ के लिए लगाया था,,, तब भी आजतक इतने प्रूफ रददोंबदल होने के बाद रवानी अर्थात सरलता नहीं आयी,,


छटी बात शराब बारे में आपने जो भ्रमित किया है
अल्लाह तआला ने हमें इस शैतानी कुचक्र से सावधान किया है। इस्लाम ‘‘दीन-ए-फ़ितरत’’ (प्राकृतिक धर्म) कहलाता है। अर्थात ऐसा धर्म जो मानव के प्रकृति के अनुसार है। इस्लाम के समस्त प्रावधानों का उद्देश्य यह है कि मानव की प्रकृति की सुरक्षा की जाए। शराब और मादक द्रव्यों का सेवन प्रकृति के विपरीत कृत्य है जो व्यक्ति और समाज में बिगाड़ का कारण बन सकता है। शराब मनुष्य को उसकी व्यक्तिगत मानवीय प्रतिष्ठा और आत्म सम्मान से वंचित कर उसे पाश्विक स्तर तक ले जाती है। इसीलिए इस्लाम में शराब पीने की घोर मनाही है और इसे महापाप ठहराया गया है।
अल्‍लाह ने इस बुराई को बहुत ही बढिया तरीके से मुसलमानों से दूर किया, शराब का हुकम एक ही बार में दे दिया जाता तो,,, पुराने पियक्‍कड मुश्किल में पड जाते,,,,,इन्‍सानी फितरत के मुताबिक शराब छुडाही गयी,,  कुरआन का ईश्‍वरीय ज्ञान जो 23 साल तक आता रहा,,,उसमें साथ-साथ पहले से फैली हुई बुराईयों को दुर किया गया,,, कुरआन की 114 सूरतों में दूसरी में ही मुसलमानों को इसका पीने में  गुनाह अधिक और लाभ कम बता दिया गये,,
तुमसे शराब और जुए के विषय में पूछते है। कहो, "उन दोनों चीज़ों में बड़ा गुनाह है, यद्यपि लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी है, परन्तु उनका गुनाह उनके फ़ायदे से कहीं बढकर है।" ॥2:219॥
फिर कुछ समय बाद चोथी आयत में मना कर दिया गया-

ऐ ईमान लानेवालो! नशे की दशा में नमाज़ में व्यस्त न हो, जब तक कि तुम यह न जानने लगो कि तुम क्या कह रहे हो। और इसी प्रकार नापाकी की दशा में भी (नमाज़ में व्यस्त न हो), जब तक कि तुम स्नान न कर लो, सिवाय इसके कि तुम सफ़र में हो।  4:43

अल्‍लाह फिर कुछ समय बाद पांचवी आयत में शराब से अलग रहने का हुकम दे दिया-
ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो (90)॥5:90॥
पवित्र हदीसों में शराब की मनाही
 हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः

(क) ‘‘शराब तमाम बुराईयों की माँ है और तमाम बुराईयों में सबसे ज़्यादा शर्मनाक है।’’ (सुनन इब्ने माजह, जिल्द 3, किताबुल ख़म्र, अध्याय 30, हदीस 3371)

(ख) ‘‘प्रत्येक वस्तु जिसकी अधिक मात्रा नशा करती हो, उसकी थोड़ी मात्रा भी हराम है।’’ (सुनन इब्ने माजह, किताबुल ख़म्र, हदीस 3392)
इस हदीस से अभिप्राय यह सामने आता है कि एक घूंट अथवा कुछ बूंदों की भी गुंजाईश नहीं है।

(ग)  केवल शराब पीने वालों पर ही लानत नहीं की गई, बल्कि अल्लाह तआला के नज़दीक वे लोग भी तिरस्कृत हैं जो शराब पीने वालों के साथ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संमबन्ध रखें। सुनन इब्ने माजह में किताबुल ख़म्र की हदीस 3380 के अनुसार हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः

‘‘अल्लाह की लानत नाज़िल होती है उन 10 प्रकार के समूहों पर जो शराब से सम्बंधित हैं। एक वह समूह जो शराब बनाए, और दूसरा वह जिसके लिए शराब बनाई जाए। एक वह जो उसे पिये और दूसरा वह जिस तक शराब पहुंचाई जाए, एक वह जो उसे परोसे। एक वह जो उसको बेचे, एक वह जो इसके द्वारा अर्जित धन का उपयोग करे। एक वह जो इसे ख़रीदे। और एक वह जो इसे किसी दूसरे के लिये ख़रीदे।’’


आर्यसमाज ने ऐसा पंडित शास्‍त्री को सामने रखकर तमाशा देखना शुरू किया जो अपने 12 पृष्‍ठों के प्रतिउत्तर में 2 लाइन भी वेदों या सत्‍यार्थ प्रकाश से न लिख सका,,,,, इतिहास के शास्तार्थ आप पढेंगे तो पाएंगे दूसरे धर्म की जो शिक्षा या बात गलत या बुरी लगे उसे अपनी धर्म पुस्‍तक से उसका अच्‍छा हल, या शिक्षा बतायी जाती है जैसा कि 'शराब' बारे में तो पंडित जी ने गलत समझ कर आधी लाइन रखकर शराब बारे में अल्‍लाह की समझ-तरीके पर पाठकों को भ्रमित किया है जबकि उनको चाहिए था कि साथ ही यह भी बतायें कि 'शराब' के विषय में वेद या 'सत्‍यार्थ प्रकाश' किया कहते हैं?,,, शराब से हानियों को बताने पर सरकार काफी खर्च कर रही है और समाज आम तौर पर बुराई की जड समझ चुका, मान चुका 
फिर भी उसे आपकी धर्म पुस्‍तकें अच्‍छा समझती हैं तो क्‍या अच्‍छाई बताई है?,बुराई बताते हैं तो इसे समाज से दूर करने बारे में उनका क्‍या कहना है?




छटी बात गाजी महमूद के बारे खुद ने काफी बातें देकर भी गप माना,,, गप्‍प बारे में उपर दिया गया है 
बिस्मिल्‍लाह ....

 सातवीं बात
उतपत्ति .........
आठवी बात
कुरआन का ईशवरीय होना
कुरआन की सूरत पर महाज्ञानी दयानंद जी की समीक्षा देख कर पाठकों को बताओं उन्‍होंने किया कहा था,, सत्‍यार्थ प्रकाश से भी आपने बात नहीं की तो उसका ज्ञान भी कम ही होगा इस लिए आपको कहां है भी बता देते हैं, [14 वें सम्‍मुलास की 8 समीक्षा],,, हक प्रकाश बजवाब सत्‍यार्थ प्रकाश में उस समीक्षा पर मौलाना ने जवाब देने काबिल भी नहीं समझा था, लेकिन हम आपसे उम्‍मीद करते हैं आप जरूर देखने का कष्‍ट करेंगे  इससे हमें उम्‍मीद है आपके और दयानंद जी के एतिहासकि ज्ञान को समझने में आसानी रहेगी  ----- कुरआन जो ईश्वरवाणी है उसने संसार को अपने सत्य ईश्वरवाणी होने के लिए यह चुनौती दी कि http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/2:23 ‘‘अगर तुमको संदेह है कि कुरआन उस मालिक का सच्चा कलाम नहीं है तो इस जैसी एक सुरह (छोटा अध्याय) ही बनाकर दिखाओ और इस कार्य के लिए ईश्वर के सिवा समस्त संसार को अपनी मदद के लिए बुला लो, अगर तुम सच्चे हो। (सूर: बकरा, 23)And if you are in doubt about what We have sent down upon Our Servant [Muhammad], then produce a surah the like thereof and call upon your witnesses other than Allah, if you should be truthful. (23) चौदह सौ साल से आज तक इस संसार के बसने वाले, और साइंस कम्पयूटर तक शोध करके थक चुके और चुनौती का समय अभी भी अपनी जगह अर्थात हिसाब देने के दिन कियामत तक 
नवीं बात
तारिक साहब से शास्तार्थ   
दस बात
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एक तरफ कुरआन जिसका कभी संशोधन नहीं किया गया,, दूसरी तरफ दुनिया भर की किताबों को हाल जैसे के
‘सत्यार्थ प्रकाश’ जो एक वेद विद्वान और संस्कृत के प्रकांड पंडित का लिखा हुआ बताया जाता है, इसके अब तक 38 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। कई बार वेद-विद्वानों और विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा इसके प्रूफ शौधन का प्रयास किया गया, मगर आज तक इसकी भाषा और व्याकरण ही शुद्ध न हो सकी। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि इस ग्रंथ के संपादको और अनुयायियों ने कभी इसे न गंभीरता से लिया है और न ही कोई खास महत्व ही दिया है। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ का 38वां संस्करण जो सन् 2006 में प्रकाशित हुआ और जिसका संपादन पंडित भगवद्दत् (रिसर्च स्कॉलर) ने किया। इस संस्करण को साढ़े तीन माह तक विद्वानों की एक टीम द्वारा प्रूफ शोधन के बाद प्रकाशित कराया गया। लिखा गया है कि इस बार सर्वशुद्ध ‘सत्यार्थ प्रकाश’ देने का प्रयास किया जा रहा है, मगर नतीजा ‘ढाक के तीन पात’ व्याकरण की अशुद्धियाँ आज तक भी ‘शुद्ध नहीं हो पाई। भाषा व्याकरण तो क्या, उसमें वर्णित कुरआन की आयतों के नम्बर व तरतीब तक गलत है। (कुरआन पर आरोपः कितने स्तरीय ?) 

छूरी हजरत इब्राहीम से मुतालिक सवा‍ल का जवाब

तो हमने उसे एक सहनशील पुत्र की शुभ सूचना दी (101) फिर जब वह उसके साथ दौड़-धूप करने की अवस्था को पहुँचा तो उसने कहा, "ऐ मेरे प्रिय बेटे! मैं स्वप्न में देखता हूँ कि तुझे क़ुरबान कर रहा हूँ। तो अब देख, तेरा क्या विचार है?" उसने कहा, "ऐ मेरे बाप! जो कुछ आपको आदेश दिया जा रहा है उसे कर डालिए। अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान पाएँगे।" (102)अन्ततः जब दोनों ने अपने आपको (अल्लाह के आगे) झुका दिया और उसने (इबाराहीम ने) उसे कनपटी के बल लिटा दिया (तो उस समय क्या दृश्य रहा होगा, सोचो!) (103) और हमने उसे पुकारा, "ऐ इबराहीम! (104) तूने स्वप्न को सच कर दिखाया। निस्संदेह हम उत्तमकारों को इसी प्रकार बदला देते है।" (105) निस्संदेह यह तो एक खुली हूई परीक्षा थी (106) और हमने उसे (बेटे को) एक बड़ी क़ुरबानी के बदले में छुड़ा लिया (107) और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका ज़िक्र छोड़ा, (108) कि "सलाम है इबराहीम पर।" (109) उत्तमकारों को हम ऐसा ही बदला देते है (110) निश्चय ही वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था (111) और हमने उसे इसहाक़ की शुभ सूचना दी, अच्छों में से एक नबी (112) और हमने उसे और इसहाक़ को बरकत दी। और उन दोनों की संतति में कोई तो उत्तमकार है और कोई अपने आप पर खुला ज़ुल्म करनेवाला (113) और हम मूसा और हारून पर भी उपकार कर चुके है (114) और हमने उन्हें और उनकी क़ौम को बड़ी घुटन और बेचैनी से छुटकारा दिया (115) हमने उनकी सहायता की, तो वही प्रभावी रहे (116) हमने उनको अत्यन्त स्पष्टा किताब प्रदान की। (117) और उन्हें सीधा मार्ग दिखाया (118) और हमने पीछे आनेवाली नस्लों में उसका अच्छा ज़िक्र छोड़ा (119) कि "सलाम है मूसा और हारून पर!" (120) निस्संदेह हम उत्तमकारों को ऐसा बदला देते है (121)Quran:37:103-121http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/37:103
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जिन्‍होंने इस किताब पर एक दृष्टि डाली होगी वह यह बात आसानी से समझ लेंगे कि ''हक प्रकाश बजवाब सत्‍यार्थ प्रकाश' (1900ई.) के जवाब में जिस पुस्‍तक को मशहूर किया जा रहा है वो लगभग 37 वर्ष बाद प्रकाशित की गयी,, 

'चौदहवीं के चांद' के पृष्‍ठ 29 पर सम्‍पादकीय से यह राज खुलता है है लगभग 37 साल बाद यह पुस्‍तक प्रकाशित हुई थीः  
''श्री पण्डित चमूपति जी ने सन 1937 में देहत्‍याग किया ''चौदहवीं का चांद'' पुस्‍तक उनके अन्तिम वर्षों में लिखी गई एक उत्‍तम पुस्‍तक है'' ) (आनलाइन संस्‍करण 2008)

इतने समय बाद भी इसमें केवल एक लेख 'हक़ प्रकाश पर एक दृष्टि' ऐसा है जिस खन्‍डन या समीक्षा के रूप में माना जा सकता है, दो-तीन जगह किताब में इधर-उधर मौलाना का नाम घुसा कर, आजके चेलों ने इस एकमात्र को भी अपनी कलाकारी से थोडा विस्‍तार दिया,,,, यह बात यूं पता चली कि इस एकमात्र लेख में ऐसी प्रूफ की बातों का बुरा माना गया है जो केवल 'हकप्रकाश' के आधुनिक हिन्‍दी एडिशन में हैं,,,   ,
महाराज शब्‍द को ''माराज'' टाइप होने पर एतराज किए जाने ने खोली नए चेलों की पोल 
1979 तक हाथ से लिखी यानि किताबत से लिखी ''हक प्रकाश'' में महाराज शब्‍द ठीक लिखा है, मगर 2003 ई. की कम्‍पयूटराईज्‍ड उर्दू में प्रूफ रिडिंग की गलती के कारण 'माराज' मिलता है, फिर यही एडिशन हिन्‍दी में कम्‍यूट्राइज्‍ड आया तो उसमें भी, माराज लिखा मिलता है, 
इससे यह साबित होता है कि चौदहवीं के चांद' का यह एकमात्र लेख भी स्‍वर्गीय? चमुपति जी का नहीं क्‍यूंकि यह कम्‍पयूटराईज्‍ड कम्‍पोजिंग से आई प्रुफ त्रुटि है जिसे आजके चेलों ने पढकर 1937 में देहत्‍याग चुके पंडित जी के नाम से एतराज जड दिया, शर्म तो आती ही नहीं, अपनी अज्ञानता को भी पंडित जी के नाम से पेश कर दिया,
नोट- यह आपत्ति पुराना और नया छपा आनलाइन उर्दू हिन्‍दी के 'हक प्रकाश' समीक्षा नम्‍बर 23 और 100 से साबित होती है
चेलों को यह चालाकी? 1948ई. में मौलाना सनाउल्‍ला अमृतसरी के देहांत के बाद ही हो सकी जिन्‍होंने आर्य समाज की किताबी जंग को ''मुकद्दस रसूल'' नामी पुस्‍तक से खतम किया था, उन्‍हीं मौलाना को 25 वर्ष बाद तक यानि जुलाई 1924 तक हक प्रकाश के 5वें एडिशन तक भी हक प्रकाश के जवाब का इन्‍तजार रहा,  
लिखते हैं 
''एक दो नम्‍बरों पर स्‍वामी दर्शना नंद ने लिखा फिर वह दुनिया सिधार गये (देखें आनलाइन 'हक प्रकाश' हिन्‍दी पृष्‍ठ 18), 

37 साल बाद एक आर्टिकिल? 112 साल बाद इतना बडा झूठ कि वो हक प्रकाश में159 प्रतिउत्‍तर का जवाब है?,,,,, आर्य शास्त्रियों  ''हक प्रकाश'' को आज 112 वर्ष बाद भी जवाब का इन्‍तजार है  
अधिक विस्‍तार से इधर पढ सकते हैं 


आप ही अपने ज़रा, ज़ोरो सितम को देखें
हम अगर अर्ज़ करेंगे तो शिकायत होगी


''हक प्रकाश बजवाब सत्‍यार्थ प्रकाश'' जो मौलाना सनाउल्‍ला अमृतसरी की 5-7 महीनों के नतीजा हो सकती है का 112 साल में जवाब आर्य समाज से  न बन सका, फिर जो किताब 45 साल की महनत से तैयार की गयी हो उसके जवाब की उम्‍मीद आर्यसमाज से करना बेवकुफी होगी, देखें गुलाम हसनैन की आनलाइन उर्दू में पुस्‍तक ''स्‍वामी दयानंद और उनकी तालीम''

परिचय- ''स्‍वामी दयानंद और उनकी तालीम''
लेखक गुलाम हसनैन की 45 वर्ष की महनत का नतीजा 1933 में प्रकाशित यह पुस्‍तक अब आनलाइन उपलब्‍ध
--बहुत समय से इस बात की जरूरत महसूस हो रही थी कि तहकीकी अन्‍दाज़ में एक मुकम्‍मल, विस्‍तृत और दलीलों के साथ(तर्कयुक्‍त) किताब लिखी जाए, जिसमें आर्य धर्म की शिक्षाएं अपने असली रंग में और उसके संस्‍थापक के ज़ाती हालात तन्‍कीद(आलोचना) की रोशनी में दरज किए जाएं, मगर यह काम हर किसी का न था, बल्कि इसके लिए खास काबलियत, बेहद अध्‍ययन और बहुत तलाश और तहकीक की ज़रूरत थी, और यह काम सालहा साल की फुरसत को चाहता था, खुदा जज़ाए खेर दे मौलाना खाजा गुलाम अलहसनैन साहब को कि उन्‍होंने इस अज़ीमुश्‍शान काम का बेडा उठाया और अपनी उमर का एक बेशबहा हिस्‍सा यानि लगभग 45 साल निहायत सबर और खामोशी के साथ मज़हब के अध्‍ययन में खर्च कर दिए, इस मकसद के लिए एक बडी लाइब्रेरी कायम की और आर्य समाज के सम्‍बन्‍ध में जो कुछ जहां से मिल सका, हासिल करने में तलाश का कोई दकीका (सूक्षमता,मामूली सा रास्‍ता भी) बाकी नहीं छोडा, इस लगाता और मुसलसल कोशिश का नतीजा मौजूदा किताब की शकल में आज आपके सामने(आनलाइन) है जाहिर है कि जो किताब इस कदर जानतोड महनत के लिखी जाए वो किस बुलंद दरजे की होगी, ब्‍यान की दिलचस्‍पी, दलीलों की मजबूती, और तरीके इस्‍तदलाल(विवेचन) की उमदगी के लिहाज़ से यह किताब अपना जवाब नहीं रखती, मगर इसका सबसे बडा कमाल यह है कि सारी किताब को पढ जाने के बाद भी आपो इसमें कोई शब्‍द सख्‍त, उत्‍तेजित अर्थात भडकाने वाला नहीं मिलेगा, इस किसम की दूसरी आम किताबों बरखिलाफ इस किताब का लहजा इतना नर्म इतना मुहज्‍ज़ब और इस कदर संजीदा है कि बेइख्तियार लेखक की खुदादाद कुदरते तहरीर और शराफते तबियत की दाद देनी पडती है, फिर लिखने का अंदाज़ इतना सलीस औ आम फहम है कि मामूली लियाकत का आदमी भी तमाम मतालिबे किताब को बखूबी समझ सकता है, इस किताब का दूसरा कमाल इसकी किताब का अंदाज है कि सफा पर नज़र पडते ही तमाम मज़मून का खाका ज़हन नशीं हो जाता है, असल किताब से कता नज़र इस की विषय सूची, इसकी मुकददमा(भूमिका), इसकी जमीमे(परिशि‍स्‍ट), और इसका इन्‍डेक्‍स भी बे इन्तिहा काबिले कदर चीज हैं, मुख्‍तसर यह कि बानी (संस्‍थापक) आर्य समाज की प्राइवेट और पब्लिक लाइफ का यह किताब ऐसा बहतरीन प्रतिरूप है जिस में उनकी असली और पूरी तस्‍वीर हर पाठका को बिल्‍कुल साफ नजर आएगी, 
अलावा मजहबी हैसियत के यह किताब सियासी लिहाज़ से भी खास अ‍हमियत रखती है, मुलक का सियायत पसंद तबका जिस समय सियासी नुक्‍ता ए नजर से इसको पढेगा तो उस पर बहुत से हैरत अंगेज राज मुन्‍कफ होंगे, तारीखी एतबार से भी इस किताब को खास हैसियत हासिल है, फन-ए-तारीख के शौकीन इसके अध्‍ययन से कुछ ऐसे अजीब नुक्‍ते मालूम करेंगे जो अबतक परदा राज़ में थे, गर्ज़ किताब किया है मजहबी लिट्रेचर में एक मुखतसर सा इन्‍साइकिलोपीडिया है, खुदा ताला हर शखस को अपने अपने शौक के मुताबिक इससे फायदा उठाने की तौफीक बखशे, आमीन
शेख मुहम्‍मद इस्‍माईल पानीपती (4 दिसम्‍बर 1932 ई़)
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बिस्मिल्‍लाह 

आर्य समाज की असल आपत्ती यह रही है कि ईश्‍वरीय कलाम का गुजरा हुआ न होना उनके निकट शर्त है अर्थात ईश्‍वरीय वाणी वो होती है जो दुनिया के आरंभ से हो,, इसलिए इब्राहीमी धर्म (यहूदी, इसाई और इस्‍लाम) की तौरेत, इंजील और कुरआन आदि पुस्‍तकों को ईश्‍वरीय नहीं मानते, इस कसौटी पर वेदों को देखें तो वेद में लिखा है कि 
''जिस प्रकार प्राचीन काल के विद्वान तुम्‍हारे पूर्वज समस्‍त विद्याओं के माहिर गुजर चुके हैं मुझ कादिर मुतलक ईश्‍वर के आदेश का पालन करते रहे हैं तुम भी उसी धर्म के पाबंद रहो ताकि वेद में बताए हुए धर्म का तुम को निस्‍संदेह ज्ञान हो जाए। (ऋगवेद अशटक 8 अध्‍याय8)   
 इस वाक्‍य से साफ समझ में आता कि वेद किसी ऐसे युग में बना है कि उस दौर की दुनिया की आबादी इतनी अधिक हो चुकी थी कि उस समय के मौजूदा लोगों को गुजर चुके विद्याओं के माहिर बुजुर्गों के हाल से विद्या ग्रहण करने की आवश्‍यकता पडती थी।
अब बताइए जब वेद से पहले कोई जमाना नहीं तो तो फिर वेद में ऐसे क्‍यूं कहा जा रहा है?


ईश्‍वरीय किताबों का मुहावरा और कलाम की शैली कई प्रकार की होती है कभी तो ईश्‍वर स्‍वयं बात कहने के रूप में अपना आदेश स्‍पष्‍ट करता है कभी गायब से और कभी कोई ऐसा मतलब जो दुआ या निवेदन के रूप में बंदों को सिखाना अपेक्षित हो उसे बन्‍दों की ज़बान से व्‍यक्‍त कराया जाता है।

यदि ऋगवेद मंत्र 1 को देख लेते तो यह बेजा आपत्ती न कर पाते ा
समाजियों तनिक ध्‍यान से सुनो1 
''हम लोग इस अग्नि की प्रशंसा करते है। जो कि हमारा पूरा हित करने वाली यज्ञों की हवन करने वाली, रौशन मौसमों को बदलने वाली, समस्‍त तत्‍वों का पैदा करने वाली है।''
बताओ! यह अग्नि से (आपके क‍थनुसार) ईश्‍वर ही तात्‍पर्य है और वेद भी ईश्‍वर का कलाम है तो उस कलाम को मानने वाला कौन है?
इसके अलावा यह भी देखें यजुर्वेद अध्‍याय 21 मंत्र 18, ऋगवेद अष्‍टक 6 अध्‍याय1 वरग मन्‍त्र 6 न. 5 और यजुर्वेद अध्‍याय 32 मन्‍त्र 14 आदि 

स्‍वामी दयानंद का कहना था कि ''आरंभ वास्‍ते हिदायत मनुष्‍यों के ऐसा कहता'' इससे पता चलता है कि उन्‍हें शब्‍द आरंभ पर एतराज न था क्‍यूंकि इस शब्‍द पर आपत्ती होती तो करक्‍शन के मशवरे में शब्‍द आरंभ क्‍यूं लाते,,

कुरआन का अनुवाद को सरल किया जाता है जबकि आर्यसमाज काटछांट करता रहा है, सत्‍यार्थ प्रकाश लिखने के समय में बिस्मिल्‍लाह का अनुवाद उर्दू में ऐसे था, जिसे दयानंद जी ने उर्दू से हिन्‍दी में करवाकर पढा
''आरंभ अल्‍लाह के नाम के साथ क्षमा करने वाले क.पालु के 
फिर पिछले कुछ समय जो उर्दू अनुवाद आप देख रहे हैं सरल किया गया है, 
शुरू करता हूं अल्‍लाह के नाम से
 फिर आजकल
अल्‍लाह के नाम से जो............ 
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 तुम सदमा हमें देते  हम फरियाद यूं करते
 खुलते राज़ सरबस्‍ता  ये रूसवाईयां होतीं


आप ही अपने ज़रा, ज़ोरो सितम को देखें
हम अगर अर्ज़ करेंगे तो शिकायत होगी

उलटी समझ किसी को भी ऐसी खुदा ने
दे आदमी को मौत, ये बद अदा दे

मुश्किल बहुत पडेगी बराबर की चोट है
आईना देखिएगा ज़रा देख-भाल के

खंजर उठेगा तलवार इनसे
यह बाज़ू मेरे आज़माए हुए हैं

मानो मानो जान--जहां इख्तियार है
हम नेक बद हुज़ूर का समझाए जाते है

फिरे ज़माना, फिरे आसमां, हवा फिर जाए
'दया' से, हम फिरें, हम से गो ख़ुदा फिर जाए

इधर प्‍यारे हुनर आ़जमाएं
तू तीर आज़मा हम जिगर आज़माएं


कुछ जवानी है अभी कुछ है लडकपन इनका
दो जफाकरों के कब्‍ज़े में है यौवन इनका



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