Wednesday, September 7, 2016

सूर्य किसी लोक या केन्द्र के चारों ओर नहीं घूमता

स्वामी जी के वेदार्थ का एक और नमूना देख लीजिए-

‘जो सविता अर्थात सूर्य ... अपनी परिधि में घूमता रहता है किन्तु किसी लोक के चारों ओर नहीं घूमता।’
  (यजुर्वेद, अ033, मं. 43/सत्यार्थप्रकाश, अष्टम. पृ. 155)

(38) यह बात भी सृष्टि नियम के विरुद्ध है। एक बच्चा भी आज यह जानता है कि सूर्य न केवल अपनी धुरी पर बल्कि किसी केन्द्र के चारों ओर भी पूरे सौर मण्डल सहित चक्कर लगा रहा है। तब सृष्टिकर्ता परमेश्वर अपनी वाणी वेद में असत्य बात क्यों कहेगा? देखिये-
‘सूर्य अपनी धुरी पर 27 दिन में एक चक्कर पूरा करता है।’
 (हमारा भूमण्डल, कक्षा 6, भाग 1, पृष्ठ 9, बेसिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश, लेखक- अंजु गौतम आदि)

‘तुम्हें यह जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि हमारा सूर्य बड़ी तेज़ी से चक्कर लगाते हुए लगभग 25 करोड़ वर्ष में अपनी आकाशगंगा की एक परिक्रमा पूरी करता है।’ (पुस्तक उपरोक्त, पृष्ठ 6)
(39) स्वामी जी ने सायण, उव्वट और महीधर आदि विद्वानों को भांड, धूर्त आदि अशोभनीय शब्द कहे और उनके वेदभाष्य को भ्रष्‍ट बताया। उन्होंने केवल अपने द्वारा रचित वेदार्थ को ही ठीक बताया है। स्वामी जी वेद को ईश्वरोक्त मानते थे न कि ऋषियों की रचना। स्वामी जी ने ईश्वरोक्त ग्रन्थ के जो लक्षण बताए हैं, क्या वे लक्षण वेद में पाए जाते हैं?

-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
 http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html

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