Wednesday, September 7, 2016

वेदपाठी सन्यासी इन्जीनियर से नीचे और दैत्य के बराबर कैसे?


‘तापसा यतयो विप्रा ये च वैमानिका गुणाः। नक्षत्राणि च दैत्याश्च प्रथमा सात्विकी गतिः।। (सत्यार्थप्रकाश, नवमसमुल्लास, पृ.173)
जो तपस्वी, यति, संन्यासी, वेदपाठी, विमान के चलाने वाले, ज्योतिड्ढी और दैत्य अर्थात् देहपोड्ढक मनुष्य होते हैं उनको प्रथम सत्वगुण के कर्म का फल जानो।
(48) वेदपाठी, सन्यासी और तपस्वी को हवाई जहाज़ के पायलट और दैत्य के साथ एक ही श्रेणी में रखना कैसे न्याय हो सकता है?
(49) क्या तपस्वी, यति, सन्यासी और वेदपाठी को पायलट और दैत्य के समकक्ष मानना उनका पदावनति और अपमान नहीं है?
(50) प्रथम सत्वगुण के कर्म करने के बाद भी आदमी मरने के बाद दैत्य बनकर पैदा हुआ तो उसे क्या फ़ायदा हुआ?
    सत्वगुणी कर्म करके दैत्य बनने वाले से अच्छे तो वे अत्यन्त तमोगुणी व्यक्ति रहे जो किसी की हत्या करके या चोरी और व्यभिचार करके पीपल, तुलसी आदि वृक्ष या गाय आदि पशु बन गये और आदर पाते रहे।
प्रथम सत्वगुण से ऊँचा दर्जा मध्यम सत्वगुण का है। मनुस्मृति के अनुसार मध्यम सत्वगुण के कर्म करने वाला विद्युत विद्या का जानकार अर्थात इलैक्ट्रिकल इन्जीनियर बनकर पैदा होता है। इससे ऊँचा दर्जा उत्तम सत्वगुण के कर्म करने वालों को मिलता है। उन्हें विमानादि यानों को बनाने वाले का जन्म मिलता है। (देखिए सत्यार्थप्रकाश, नवमसमुल्लास, पृ.172)
यहाँ भी तपस्वी, यति, सन्यासी और वेदपाठी हवाई जहाज़ बनाने वाले इन्जीनियर से दो दर्जे नीचे रह गए। इनके बराबर केवल ब्रह्मा जैसे सब वेदों के वेत्ता को रखा गया है। हवाई जहाज़ बनाने वाले इन्जीनियर को तो सब वेदों के ज्ञानी ब्रह्मा जी जैसे विद्वान के बराबर रख दिया और वेदपाठी, सन्यासी, यति और तपस्वियों को उससे दो दर्जे नीचे रखा। उन्हें बिजली मैकेनिक या इन्जीनियर से भी नीचे रखा गया। इससे भी बढ़कर यह कि उन्हें पायलट और दैत्यों की श्रेणी में रख दिया गया।
(51) आवागमन को मानने वाले वेदपाठी सन्यासियों ने जीवन भर की तपस्या के बाद पाया भी तो क्या, एक दैत्य के बराबर दर्जा पाया? 
(52) चोरी, व्यभिचार और हत्या करने वाले पेड़ बन गए तो उनका क्या बिगड़ गया? वे तो बाल-बच्चों को पालने और ब्याहने की चिंता से और मुक्त हो गए। आवागमन की मान्यता से पापियों को फ़ायदा और सत्कर्मियों को नुक्सान होता हुआ साफ़ दिख रहा है। वे पीपल, बरगद और तुलसी आदि वृक्ष बन गए तो कुछ जगहों पर लोग उनकी पूजा करते हुए, उन्हें सम्मान देते हुए भी मिल जाएंगे। 




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डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है

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