एक इन्सान जब होश संभालता है तो ऐसे बहुत से प्रश्न उसके मन को बेचैन करते हैं। जब वह इस सृष्टि पर नज़र डालता है और पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं, फसलों और मौसमों को, धरती की सुंदरता और अंतरिक्ष की विशालता को, सूर्य से लेकर परमाणु तक को, उनकी संरचना, संतुलन और उपयोगिता को देखता है तो सहज ही कुछ प्रश्न पैदा होते हैं कि यह सब कुछ खुद से है या इसका कोई बनाने वाला और चलाने वाला है? अगर यह सब कुछ खुद से ही है तो इतना संतुलन और इतनी नियमबद्धता, व्यवस्था और उपयोगिता इन बुद्धि और चेतना से खाली निर्जीव पदार्थो में आई कैसे? और अगर कैसे भी इत्तेफाक़ से आ गई तो फिर निरन्तर कैसे बनी हुई है? और अगर ये सब ख़ुद से नहीं हैं बल्कि किसी ज्ञानवान हस्ती ने इस सृष्टि की रचना की है तो उसने ऐसा किस उद्देश्य से किया है? उसने मनुष्य को क्यों पैदा किया? और वह उससे क्या चाहता है? वह कौन सा मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी पैदाईश के उद्देश्य को पाने में सफल हो सकता है? आदि आदि।
मनुष्य अपने परिवार वालों को दुख उठाकर मरते हुए देखता है तो उसके दिल में मौत का डर बैठ जाता है। तब वह सोचने लगता है कि मौत से कैसे बचा जाए या कम से कम मौत के कष्ट से बचने का ही उपाय ढूंढ लिया जाए।
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
मनुष्य अपने परिवार वालों को दुख उठाकर मरते हुए देखता है तो उसके दिल में मौत का डर बैठ जाता है। तब वह सोचने लगता है कि मौत से कैसे बचा जाए या कम से कम मौत के कष्ट से बचने का ही उपाय ढूंढ लिया जाए।
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