स्वामी दयानन्द जी ने भी अपनी 14 वर्षीय बहन को विशूचिका (हैज़ा) से मरते हुए देखा। वह स्वयं बताते हैं-
‘सारांश यह है कि उसी समय पूर्ण विचार कर लिया कि जिस प्रकार हो सके मुक्ति प्राप्त करूं जिसके द्वारा मृत्यु समय के समस्त दुःखों से बचूं।’ (महर्षि दयानन्द सरस्तवी का जीवन चरित्र, पृष्ठ 39)
इस घटना के लगभग 3 वर्ष बाद उनके चाचा की मृत्यु भी विशूचिका से ही हो गई। स्वामी जी बताते हैं-
‘इसके पश्चात मुझे ऐसा वैराग्य हुआ कि संसार कुछ भी नहीं किन्तु यह बात माता-पिता जी से तो नहीं कही किन्तु अपने मित्रों और विद्वान पंडितों से पूछने लगा कि अमर होने का कोई उपाय मुझे बताओ। उन्होंने योगाभ्यास करने के लिए कहा। तब मेरे जी में आया कि अब घर छोड़कर कहीं चला जाऊं।’ (महर्षि दयानन्द सरस्तवी का जीवन चरित्र, पृष्ठ 40)
...और सचमुच वह एक दिन घर छोड़कर निकल खड़े हुए।
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
--
पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
‘सारांश यह है कि उसी समय पूर्ण विचार कर लिया कि जिस प्रकार हो सके मुक्ति प्राप्त करूं जिसके द्वारा मृत्यु समय के समस्त दुःखों से बचूं।’ (महर्षि दयानन्द सरस्तवी का जीवन चरित्र, पृष्ठ 39)
इस घटना के लगभग 3 वर्ष बाद उनके चाचा की मृत्यु भी विशूचिका से ही हो गई। स्वामी जी बताते हैं-
‘इसके पश्चात मुझे ऐसा वैराग्य हुआ कि संसार कुछ भी नहीं किन्तु यह बात माता-पिता जी से तो नहीं कही किन्तु अपने मित्रों और विद्वान पंडितों से पूछने लगा कि अमर होने का कोई उपाय मुझे बताओ। उन्होंने योगाभ्यास करने के लिए कहा। तब मेरे जी में आया कि अब घर छोड़कर कहीं चला जाऊं।’ (महर्षि दयानन्द सरस्तवी का जीवन चरित्र, पृष्ठ 40)
...और सचमुच वह एक दिन घर छोड़कर निकल खड़े हुए।
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