Tuesday, September 6, 2016

स्वामी जी बूढ़े को जवान करने वाली भस्म बनाना जानते थे

आयुर्वेद के विशेज्ञ बताते हैं कि यदि किसी धातु की भस्म कच्ची रह जाए तो वह विष का काम करती है। लंबे समय तक इन दवाओं को लेने के नतीजे में भी उनकी मृत्यु की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। म. दयानन्द स. का जीवन चरित्र, पृ. 79 पर पं. गंगाराम का बयान है कि
    ‘हमने कहा कि कृष्णाभ्रक हमने एक ब्रह्मचारी से लिया था जिसके एक चावल से वृद्ध को यौवनशक्ति प्राप्त होती है। सात दिन की सेवनविधि है। स्वामी जी कहने लगे कि कृष्णाभ्रक मेरे पास है, ले लेना और उन्होंने पुड़िया बांध कर दी।’
    इसी पुस्तक के पृष्ठ 80 पर स्वामी जी के द्वारा नित्य मालकंगनी के 5 दाने खाने और पारे की भस्म बनाने की विधि बताने का वर्णन भी आया है। जिससे सिद्ध होता है कि स्वामी दयानन्द जी शक्तिवर्धक भस्में और दवाएं खाया करते थे। इससे इस सम्भावना को बल मिलता है कि उन्होंने अमर होने के लिए स्वयं पर किसी अन्य आयुर्वेदिक दवा का परीक्षण किया होगा और उसके साइड इफ़ेक्ट से स्वामी जी बीमार पड़ गए होंगे। आखि़र वह अपने घर से अमर होने के लिए ही निकले थे।
    इस पहलू को आर्य समाजी प्रचारकों ने भी छिपाए रखा है कि स्वामी जी जब मथुरा में पढ़ रहे थे, तब से वह अभ्रक और पारे की भस्म बनाते आ रहे थे-
    ‘स्वामी जी कभी-कभी मथुरा में अभ्रक फूंकते और पारे की गोली भी बांधा करते थे।’ (म. दयानन्द स. का जीवन चरित्र, पृ. 57)

-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
 http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html

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