यह विश्वविदित है कि परम आदरणीय ईशदूत मुहम्मद साहब (सल्ल.) पर
इस्लाम धर्म का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित हुआ। सम्भवतः इसी कारण
उनकी शिक्षाओं के विषय में भारत वर्ष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में
नर-नारियों की रुचि बढ़ती गई और इसी कारण से इस्लाम धर्म फलता-फूलता गया।
बड़े-बड़े विद्वान, कलाकार-वैज्ञानिक, उद्योगपति, व्यवसायी, ग़रीब, अमीर हज़रत
मुहम्मद साहब (सल्ल.) व पवित्र धार्मिक ग्रन्थ क़ुरआन की शिक्षाओं के बारे
में भली-भाँति परिचित होते चले गये।
कुछ यथास्थितिवादी कट्टरपंथी मनीड्ढियों, स्वामी, महात्माओं ने इस्लाम के पवित्र धार्मिक ग्रन्थ क़ुरआन को लेकर उनकी शिक्षाओं को तोड़-मरोड़ कर तथा अशोभनीय आलोचना लिखकर जन-समूह को गुमराह, भ्रमित करने का दुस्साहस कर कुप्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक ‘‘स्वामी दयानन्द जी ने क्या खोजा, क्या पाया?’’ में उन आपत्तियों तथा तथ्यों का विश्लेषण करते हुए जन-समूह के मन-मस्तिष्क में व्याप्त आशंकाओं व दुविधाओं को दूर करने का सफल प्रयत्न किया गया है।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने अपने सामाजिक एवं धार्मिक ग्रन्थ ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ के अधिकांशः समुल्लास में इस्लाम धर्म, क़ुरआन, जैन धर्म, बुद्ध धर्म एवं ईसाई धर्म के प्रति चुनौतीपूर्ण शब्दों में अशोभनीय कटाक्ष किया है, जो कि वास्तव में ही निन्दनीय प्रतीत होता है। विद्वान लेखक डा. अनवर जमाल ने प्रस्तुत पुस्तक में बहुत ही सारगर्भित रूप से स्पष्टीकरण कर अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया है, जो कि सराहनीय है और लेखक बधाई के पात्र हैं।
यहां पाठक बंधुओं को स्मरण कराना चाहूंगा कि भारत वर्ष में जाति-व्यवस्था एक ऐसी इमारत है, जिसमें सीढ़ियाँ नहीं हैं और जो जहाँ है वह सदैव वहीं रहने को बाध्य है। आखि़र ऐसा क्यों? यह प्रश्न मुझे ही नहीं अपितु प्रत्येक बुद्धिजीवी को निशदिन कचोटता रहता है? आर्यों द्वारा थोपी गई जाति आधारित असमानतावादी सामाजिक कुव्यवस्था का स्वामी दयानन्द ने खण्डन क्यों नहीं किया, आश्चर्य होता है?
प्रस्तुत पुस्तक के लेखक डा. अनवर जमाल जी ने इस आधुनिक युग में स्वामी जी की पुस्तक सत्यार्थ-प्रकाश में उल्लिखित हिन्दू धर्म से अन्यत्र धर्मों की टीका टिप्पणी और आलोचनाओं पर एक प्रभावशाली ज़ोरदार प्रहार कर शिक्षित और राष्ट्रीय हित के विचारवान लोगों को यह चिन्तन-मनन करने के लिए विवश कर दिया है कि स्वामी जी ने देश-हित और जनहित में खोजा एवं पाया बहुत कम था। मात्र इसके कि उन्होंने कट्टरता को ही पनपाया।
सम्मानित लेखक डा. अनवर जमाल साहब का यह प्रयास बहुत ही सराहनीय व प्रशंसापूर्ण कार्य साहित्य क्षेत्र में सर्वदा मील का पत्थर माना जायेगा। वे इस शुभ कार्य के लिए बधाई के सुयोग्य पात्र हैं तथा सम्पादक मण्डल के सभी सदस्यों को बधाई देना चाहूंगा, जिनके अथक प्रयास से यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। मुझे उन से आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में भी जनहित में दक़ियानूसी लेखकों पर अपनी टिप्पणी का प्रहार कर सर्वसमाज का मार्गदर्शन करते रहेंगे। मैं उनकी इस पुस्तक के लिए हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
भवतु सब्ब मंगलम्।
19.02.2014
आपका शुभाकांक्षी
हीरालाल कर्दम वरिष्ठ साहित्यकार
189, श्रद्धांजलि भवन, कोठी गेट
जनपद हापुड़ (उ. प्र.)
मोबाईल नं. 9997487981
--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf
--
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है --
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
कुछ यथास्थितिवादी कट्टरपंथी मनीड्ढियों, स्वामी, महात्माओं ने इस्लाम के पवित्र धार्मिक ग्रन्थ क़ुरआन को लेकर उनकी शिक्षाओं को तोड़-मरोड़ कर तथा अशोभनीय आलोचना लिखकर जन-समूह को गुमराह, भ्रमित करने का दुस्साहस कर कुप्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक ‘‘स्वामी दयानन्द जी ने क्या खोजा, क्या पाया?’’ में उन आपत्तियों तथा तथ्यों का विश्लेषण करते हुए जन-समूह के मन-मस्तिष्क में व्याप्त आशंकाओं व दुविधाओं को दूर करने का सफल प्रयत्न किया गया है।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने अपने सामाजिक एवं धार्मिक ग्रन्थ ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ के अधिकांशः समुल्लास में इस्लाम धर्म, क़ुरआन, जैन धर्म, बुद्ध धर्म एवं ईसाई धर्म के प्रति चुनौतीपूर्ण शब्दों में अशोभनीय कटाक्ष किया है, जो कि वास्तव में ही निन्दनीय प्रतीत होता है। विद्वान लेखक डा. अनवर जमाल ने प्रस्तुत पुस्तक में बहुत ही सारगर्भित रूप से स्पष्टीकरण कर अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया है, जो कि सराहनीय है और लेखक बधाई के पात्र हैं।
यहां पाठक बंधुओं को स्मरण कराना चाहूंगा कि भारत वर्ष में जाति-व्यवस्था एक ऐसी इमारत है, जिसमें सीढ़ियाँ नहीं हैं और जो जहाँ है वह सदैव वहीं रहने को बाध्य है। आखि़र ऐसा क्यों? यह प्रश्न मुझे ही नहीं अपितु प्रत्येक बुद्धिजीवी को निशदिन कचोटता रहता है? आर्यों द्वारा थोपी गई जाति आधारित असमानतावादी सामाजिक कुव्यवस्था का स्वामी दयानन्द ने खण्डन क्यों नहीं किया, आश्चर्य होता है?
प्रस्तुत पुस्तक के लेखक डा. अनवर जमाल जी ने इस आधुनिक युग में स्वामी जी की पुस्तक सत्यार्थ-प्रकाश में उल्लिखित हिन्दू धर्म से अन्यत्र धर्मों की टीका टिप्पणी और आलोचनाओं पर एक प्रभावशाली ज़ोरदार प्रहार कर शिक्षित और राष्ट्रीय हित के विचारवान लोगों को यह चिन्तन-मनन करने के लिए विवश कर दिया है कि स्वामी जी ने देश-हित और जनहित में खोजा एवं पाया बहुत कम था। मात्र इसके कि उन्होंने कट्टरता को ही पनपाया।
सम्मानित लेखक डा. अनवर जमाल साहब का यह प्रयास बहुत ही सराहनीय व प्रशंसापूर्ण कार्य साहित्य क्षेत्र में सर्वदा मील का पत्थर माना जायेगा। वे इस शुभ कार्य के लिए बधाई के सुयोग्य पात्र हैं तथा सम्पादक मण्डल के सभी सदस्यों को बधाई देना चाहूंगा, जिनके अथक प्रयास से यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। मुझे उन से आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में भी जनहित में दक़ियानूसी लेखकों पर अपनी टिप्पणी का प्रहार कर सर्वसमाज का मार्गदर्शन करते रहेंगे। मैं उनकी इस पुस्तक के लिए हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
भवतु सब्ब मंगलम्।
19.02.2014
आपका शुभाकांक्षी
हीरालाल कर्दम वरिष्ठ साहित्यकार
189, श्रद्धांजलि भवन, कोठी गेट
जनपद हापुड़ (उ. प्र.)
मोबाईल नं. 9997487981
--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf
--
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है --
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
No comments:
Post a Comment