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Tuesday, September 6, 2016

क्या परमेश्वर भी कभी असफल हो सकता है?

‘परमेश्वर का कोई भी काम निष्प्रयोजन नहीं होता तो क्या इतने असंख्य लोकों में मनुष्यादि सृष्टि न हो तो सफल कभी हो सकता है?’ (सत्यार्थ., अष्टम. पृ. 156)
(25) स्वामी जी ने परमेश्वर की सफलता को सूर्य, चन्द्रमा और नक्षत्रों पर मनुष्यादि के निवास पर निर्भर समझा है। इन लोकों में अभी तक किसी सभ्यता का पता नहीं चला है, तो क्या परमेश्वर को असफल और निष्‍प्रयोजन काम करने वाला समझ लिया जाये? या यह माना जाए कि स्वामी जी इन सब लोकों की उत्पत्ति से परमेश्वर के वास्तविक प्रयोजन को नहीं समझ पाए?
अतः ज्ञात हुआ कि स्वामी जी ईश्वर, जीव और प्रकृति के बारे में सही जानकारी नहीं रखते थे। वास्तव में स्वामी जी ने वेदों का अर्थ नहीं समझा बल्कि उनके मंत्रों में अपने अर्थ की कल्पना की है। जो वेदों के वास्तविक मन्तव्य को जानने समझने के बजाए उनके भावार्थ के नाम पर अपनी कल्पनाएं गढ़कर लोगों को गुमराह करे, उसे वेदों का शोधक कहना ग़लत है।


-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
 http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
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