Monday, September 5, 2016

स्वामी जी डरपोक और लालची न थे

स्वामी जी ने बुद्धि और तर्क से काम लिया। उन्होंने आर्यजाति के गौरव की वापसी के लिए मूर्तिपूजा का खंडन किया। उन्होंने वेद का प्रचार किया। वेद को समझने के लिए उन्होंने अपनी मान्यताएं स्वयं स्थापित कीं। यह सब करना आसान काम नहीं था लेकिन उन्होंने किया। उनमें साहस कूट-कूट कर भरा था। उन्हें मौत की धमकियां दी गईं और उन पर कई बार क़ातिलाना हमले किए गए लेकिन वह इन से कभी नहीं डरे। उनमें रुपये-पैसे का लोभ नहीं था। उनमें इस तरह की कई ख़ूबियां थीं। जिनकी प्रशंसा उनके मिलने वालों ने की है। उन्होंने कहा कि सबको वेद पढ़ने का अधिकार है। सब वेद पढ़ें और वेदानुकूल आचरण करें। जो ऐसा न करेगा, वह ग़ोता खाता रहेगा। स्वामी जी का निमन्त्रण सबके लिए आम है।

-Book Link-
 http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf
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डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
 https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है --
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html

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