स्वामी जी की राय शैवमत के बारे में
उन्हीं के शब्दों में देखिए-
‘(प्रश्न) शैव मत वाले तो अच्छे होते हैं?
(उत्तर) अच्छे कहां होते हैं? ‘जैसा प्रेतनाथ वैसा भूतनाथ’ जैसे वाममार्गी मन्त्रोपदेशादि से उन का धन हरते हैं वैसे शैव भी ‘ओं नमः शिवाय’ इत्यादि पवक्षरादि मन्त्रों का उपदेश करते, रूद्राक्ष भस्म धारण करते, मट्टी के और पाड्ढाणादि के लिंग बनाकर पूजते हैं और हर-हर बं बं और बकरे के शब्द के समान बड़ बड़ बड़ मुख से शब्द करते हैं। (सत्यार्थ प्रकाश, एकादशसमुल्लास, पृ. 287, 72वाँ संस्करण दिसम्बर 2009)
स्वामी जी ने स्वयं भी एक शैव परिवार में जन्म लिया था। बिरजानन्द स्वामी जी से व्याकरण पढ़ने के बाद भी उन्हें यह पता नहीं चला था कि ‘मैं कौन हूँ’, जो कि उनके द्वारा बिरजानन्द जी से पूछना बताया जाता है।
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
उन्हीं के शब्दों में देखिए-
‘(प्रश्न) शैव मत वाले तो अच्छे होते हैं?
(उत्तर) अच्छे कहां होते हैं? ‘जैसा प्रेतनाथ वैसा भूतनाथ’ जैसे वाममार्गी मन्त्रोपदेशादि से उन का धन हरते हैं वैसे शैव भी ‘ओं नमः शिवाय’ इत्यादि पवक्षरादि मन्त्रों का उपदेश करते, रूद्राक्ष भस्म धारण करते, मट्टी के और पाड्ढाणादि के लिंग बनाकर पूजते हैं और हर-हर बं बं और बकरे के शब्द के समान बड़ बड़ बड़ मुख से शब्द करते हैं। (सत्यार्थ प्रकाश, एकादशसमुल्लास, पृ. 287, 72वाँ संस्करण दिसम्बर 2009)

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डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
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