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Monday, September 5, 2016

स्वामी जी के विषय में उनके पिताजी की राय

स्वामी जी ने अपने द्वारा लिखे गए जीवन चरित्र में बताया है कि जब वह घर से चुपके से निकल आए थे तो उनके पिता जी ने उन्हें बहुत तलाश किया और आखि़रकार उन्होंने स्वामी जी को सिद्धपुर के मेले में पकड़ लिया था। स्वामी जी के शब्दों में-
‘एक दिन उस शिवालय में जहां मैं उतरा था प्रातःकाल एकाएक मेरे बाप और चार सिपाही मेरे सम्मुख आ खड़े हुए। उस समय वह ऐसे क्रोध में भरे हुए थे कि मेरी आंख उनकी ओर नहीं होती थी। जो उनके जी में आया सो कहा और मुझे धिक्कारा कि तूने सदैव को हमारे कुल को दूड्ढित किया और तू हमारे कुल को कलंक लगाने वाला उत्पन्न हुआ।
मेरे मन में आतंक बैठ गया कि कदाचित् मेरी कुछ दुदर्शा करेंगे। इस डर से मैंने उठकर उनके पांव पकड़ लिये। मेरा पिता मुझ पर बहुत क्रुद्ध हुआ।
    पिता के डर से असत्य भाड्ढण, परन्तु ध्यान फिर भी भागने में रहा- मैंने प्रार्थना की कि मैं धूर्त लोगों के बहकावे में आकर इस ओर निकल आया और अत्यन्त दुःख पाया। आप शान्त हों, मेरे अपराधों को क्षमा कीजिये। यहां से मैं घर आने ही को था, अच्छा हुआ कि आप आ गये हैं। आपके साथ चलने में प्रसन्न हूं। इस पर भी उनकी कोपाग्नि शान्त न हुआ और झपट कर मेरे कुर्ते की धज्जियां उड़ा दीं और तूंबा छीन कर बड़े जोर से धरती पर दे मारा और सैकड़ों प्रकार से मुझे दुर्वचन कहे और नवीन श्वेत वस्त्र धारण कराकर जहां ठहरे थे वहां मुझ को ले गये और वहां भी बहुत कठिन कठिन बातें कहकर बोले कि तू अपनी माता की हत्या किया चाहता है। मैंने कहा कि अब मैं चलूंगा तो भी मेरे साथ सिपाही कर दिये और उन्हें कह दिया कि कहीं क्षण भर भी इस निर्मोही को पृथक् मत छोड़ो और इस पर रात्रि को भी पहरा रखो परन्तु मैं भागने का उपाय सोचता था और अपने निश्चय में वैसा ही दृढ़ था जैसे कि वे अपने यत्न में संलग्न थे। मुझ को यही चिन्ता थी और इसी घात में था कि कोई अवसर भागने का हाथ लगे।
    ...दैवयोग से तीसरी रात्रि के तीन बजे पीछे पहरे वाला बैठा बैठा सो गया। मैं उसी समय वहां से लघुशंका के बहाने से भागकर आध कोस पर एक बगीचे के मन्दिर के शिखर में एक वटवृक्ष के सहारे से चढ़कर जल का लोटा लेकर छुपकर बैठ गया।...जब अन्धकार हुआ तब रात के सात बजे उस मन्दिर से नीचे उतर कर सड़क छोड़ किसी से पूछ वहां से दो कोस एक ग्राम था; वहां जाकर ठहरा और प्रातःकाल वहां से चला।’  (महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित्र, पृष्ठ 42)

-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
 http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
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