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Friday, September 9, 2016

क्या दुखी मनुष्य पिछले जन्म का पापी है?

समाज में आवागमन की ग़लत धारणा आम हो चुकी है। इस कारण लोग दुख उठाने वाले को कितनी बुरी नज़रों से देखते हैं बल्कि अच्छे आदमी ख़ुद अपनी नज़र में भी गिर जाते हैं और अपनी नज़र से गिरे हुए को कौन उठा सकता है ?
    हक़ीक़त यह है कि दुनिया ईश्वर की पाठशाला है। जहां वह मनुष्यों का शिक्षण और प्रशिक्षण विभिन्न माध्यमों से स्वयं कर रहा है। वह मनुष्यों का परीक्षण भी करता है और उन्हें दुनिया में सज़ा और ईनाम भी देता है। परलोक में वह अपने न्याय को पूर्ण करेगा।
    शिक्षण-प्रशिक्षण और परीक्षण में विद्यार्थियों को कष्ट होता ही है। यह स्वाभाविक है। जो विद्यार्थी अच्छे होते हैं। वे नियमों का पालन करके शिक्षा ग्रहण करते हैं और कठिन परीक्षा देते हैं और सफल होते हैं, उन्हें भी कष्ट होता है और जो नियमों का उल्लंघन करते हैं और परीक्षा में फ़ेल हो जाते हैं, उन बुरे विद्यार्थियों को भी कष्ट होता है। दुख और कष्ट सबको होता है लेकिन दोनों के कष्ट का कारण अलग अलग होता है। दुनिया में भी अच्छे और बुरे हरेक आदमी को कष्ट होता है लेकिन आवागमन के कारण अच्छे आदमी को कष्ट उठाता देखकर उसे भी बुरा समझ लिया जाता है।
    दुनिया में एक अच्छा आदमी बुरे लोगों के खि़लाफ़ संघर्ष करता है। बुरे लोग उसे जीवन भर कष्ट देते हैं और फिर उसकी हत्या कर देते हैं या उसे धोखे से ज़हर खिला देते हैं। आवागमन को मानने वाले उसके बारे में यह सोचते हैं कि यह बहुत बुरी मौत मरा है। इसके पूर्व जन्म के पापों का फल ही अब इसके सामने आया है। ज़रूर इसने पिछले जन्म में इन लोगों की हत्या की होगी, जिन्होंने इस जन्म में इसे क़त्ल किया है। लोगों के सामने यह सुधारक होने का ढोंग कर रहा था लेकिन ईश्वर ने न्याय करके इसकी असलियत सबके सामने खोल दी।
(57) क्या लोगों का ऐसा सोचना सही कहलाएगा ?
    स्वामी दयानन्द जी की तरह आदिशंकराचार्य को भी ज़हर देकर मार डालना बताया जाता है। दोनों वैदिक आचार्य आवागमन के प्रचारक थे। बडे़ भयानक कष्ट उठाने के बाद उनके प्राण निकले। स्वामी जी ने कहा है-
    ‘क्योंकि दुःख का पापाचरण और सुख का धर्माचरण मूल कारण है।’ (सत्यार्थप्रकाश, नवम., पृ.165)
(58) ज़रा सोचिए कि अगर दुख का कारण पापाचरण को माना जाए तो स्वामी ने जो दुख भोगे उनका कारण क्या माना जाएगा?

-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
 http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html

आवागमन कैसे संभव है? metemspychosis

इन्सान के लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि मरने के बाद जीवात्मा के साथ क्या होता है? यही बात इन्सान को बुरे कामों से बचकर नेक काम करने की प्रेरणा देती है। प्रत्येक को अपने शुभ-अशुभ कर्मों का फल भोगना है लेकिन किस दशा में? 
वैदिक धर्म में स्वर्ग-नर्क की मान्यता पाई जाती है। बाद में आवगमन की कल्पना प्रचलित की गई। स्वामी जी ने स्वर्ग-नर्क को अलंकार बताया और आवगमन की कल्पना का प्रचार किया। उन्होंने बताया कि मोक्ष प्राप्त आत्मा भी एक निश्चित अवधि तक मुक्ति-सुख भोगने के बाद जन्म लेती है और पापी मनुष्यों की आत्माएं भी कर्मानुसार अलग-अलग योनियों में जन्म लेती हैं।


    आवागमन की कल्पना सिर्फ इस अटकल पर खड़ी है कि सब बच्चे बचपन में एक जैसे नहीं होते। कोई राजसी शान से पलता है और कोई ग़रीबी, भूख और बीमारी का शिकार हो जाता है। ऐसा क्यों होता है? क्या ईश्वर अन्यायी है, जो बिना कारण ही किसी को आराम और किसी को कष्‍ट देता है? क्योंकि ईश्वर न्यायकारी है इसलिए इनके हालात में अन्तर का कारण भी इनके ही कर्मों को होना चाहिए और क्योंकि इनके वर्तमान जन्म में ऐसे कर्म दिखाई नहीं देते तो ज़रुर इस जन्म से पहले कोई जन्म रहा होगा। यह सिर्फ़ एक 

अटकल है हक़ीक़त नहीं। 
एक मनुष्य जब कोई पाप या पुण्य का कर्म करता है तो उसके हरेक कर्म का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है और उसके कर्म से प्रभावित होकर दूसरे बहुत से लोग भी पाप पुण्य करते हैं और फिर उनका प्रभाव भी दूसरों पर और भविष्‍य की नस्लों पर पड़ता है। यह सिलसिला प्रलय तक जारी रहेगा। इसलिये प्रलय से पहले किसी मनुष्‍य के कर्म के पूरे प्रभाव का आकलन संभव नहीं है। लोगों को प्रलय से पहले उनके कर्मों का बदला देना सम्भव नहीं है और यदि उन्हें बदला दिया जाता है तो किसी एक के साथ भी न्याय न हो पाएगा।

फिर भी अगर मान लिया जाए कि एक पापी मनुष्‍य को उसके पापों की सज़ा भुगतने के लिए पशु-पक्षी आदि बना दिया जाता है तो जब उसकी सज़ा पूरी हो जायेगी तो उसे किस योनि में जन्म दिया जाएगा? क्योंकि मनुष्‍य योनि तो बड़े पुण्य के फलस्वरूप मिलती है। इसलिए मनुष्‍य योनि में जन्म संभव नहीं है और पशु-पक्षी आदि की योनियों में उसे भेजना भी न्यायोचित नहीं है क्योंकि वह अपने पापकर्मों की पूरी सज़ा भुगत चुका है।

(54) मोक्ष प्राप्त आत्मा के जन्म के विष‍य में भी यही प्रश्न उठता है। एक निश्चित अवधि तक मुक्ति सुख भोगने के बाद मोक्ष प्राप्त आत्मा जन्म लेती है, लेकिन प्रश्न यह है कि किस योनि में लेती है?

(55) पाप उसने किया नहीं था और पुण्य का फल भी उसके पास अब शेष नहीं था। नियमानुसार ईश्वर उसे न तो पशु-पक्षी बना सकता है और न ही मनुष्य। क्या न्यायकारी परमेश्वर जीव को बिना किसी कर्म के पशु-पक्षी या मनुष्‍य योनि में जन्म दे सकता है?

(56) यदि यह मान भी लिया जाये कि दोनों को नई शुरूआत मनुष्‍य योनि से कराई जाएगी तो फिर बचपन में जब वे भूख, प्यास और मौसम आदि के स्वाभाविक कष्ट झेलेंगे तो इन कष्टों के पीछे क्या कारण माना जाएगा?, क्योंकि पाप तो दोनों के ही शून्य हैं।
इस तरह आवागमन की कल्पना से जिस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की गई। वह समस्या तो ज्यों की त्यों रही और वास्तव में मरने के बाद पाप पुण्य का फल जिस तरीक़े से मिलता है, उसे न जानने के कारण जीव को बहुत सा कष्ट उठाना पड़ता है।


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डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
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Wednesday, September 7, 2016

आवागमनः समाज का पतन

हमें जानना चाहिए कि आज वेदपाठ करना पिछले जन्म के कर्मों का फल नहीं है। स्वयं स्वामी जी ने वेद का प्रचार करने के लिए जगह जगह पाठशालाएं खोलीं और आर्य समाज मन्दिर बनवाए। इससे वेदपाठ करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी भी हुई। अगर वेदपाठी होना पिछले जन्म के कर्मों का फल होता तो स्वामी जी के प्रयास से वेदपाठियों की संख्या न बढ़ती।
    यही बात बिजली और हवाई जहाज़ बनाने वालों की है। सत्वगुण के कर्म करने से यह योग्यता पैदा हुआ करती तो आज दुनिया में आर्य समाजी सबसे ज़्यादा बिजली और हवाई जहाज़ बना रहे होते। हक़ीक़त इसके खि़लाफ़ है। बिजली और हवाई जहाज़ का सबसे ज़्यादा प्रोडक्शन वे कर रहे हैं जो स्वामी जी के अनुसार तमोगुणी हैं।
    सवारी और युद्ध के विमान आज भी भारत में नहीं बनते। भारतीय इन्हें उन विदेशियों से ख़रीदते हैं जो आवागमन में विश्वास नहीं रखते। योग्यता और कला कौशल का गुण इसी जन्म के अभ्यास से विकसित होता है। इसे पिछले जन्म के कर्म का फल मानना लोगों को ग़लत जानकारी परोसना है। जिसके कारण समाज के लोग आवश्यक पुरूषार्थ नहीं करते और वे दूसरों से पिछड़ कर उनके अधीन हो जाते हैं। ग़लत विचारों को त्यागे बिना राजनैतिक प्रभुत्व पाना और वैज्ञानिक उन्नति करना संभव नहीं है।


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