
स्वामी जी कहते हैं-
‘नास्तिक वह होता है जो वेद ईश्वर की आज्ञा विरुद्ध पोपलीला चलावे।’ (सत्यार्थप्रकाश, अष्टम., पृ.232)
स्वामी दयानन्द जी के सिद्धान्त पर स्वयं उनकी मान्यताओं को परखा जाए तो-
(35) क्या स्वयं उन की मान्यताएं भी वेद ईश्वर की आज्ञा विरूद्ध पोपलीला नहीं ठहरतीं?
(36) स्वामी जी क्या सिद्ध होते हैं, आस्तिक या नास्तिक?
ये सवाल आप अपनी आत्मा से पूछिये, वहां से आपको तुरन्त सही जवाब मिल जाएगा।
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
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