इन्सान के लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि मरने के बाद जीवात्मा के साथ क्या होता है? यही बात इन्सान को बुरे कामों से बचकर नेक काम करने की प्रेरणा देती है। प्रत्येक को अपने शुभ-अशुभ कर्मों का फल भोगना है लेकिन किस दशा में?
वैदिक धर्म में स्वर्ग-नर्क की मान्यता पाई जाती है। बाद में आवगमन की कल्पना प्रचलित की गई। स्वामी जी ने स्वर्ग-नर्क को अलंकार बताया और आवगमन की कल्पना का प्रचार किया। उन्होंने बताया कि मोक्ष प्राप्त आत्मा भी एक निश्चित अवधि तक मुक्ति-सुख भोगने के बाद जन्म लेती है और पापी मनुष्यों की आत्माएं भी कर्मानुसार अलग-अलग योनियों में जन्म लेती हैं।

आवागमन की कल्पना सिर्फ इस अटकल पर खड़ी है कि सब बच्चे बचपन में एक जैसे नहीं होते। कोई राजसी शान से पलता है और कोई ग़रीबी, भूख और बीमारी का शिकार हो जाता है। ऐसा क्यों होता है? क्या ईश्वर अन्यायी है, जो बिना कारण ही किसी को आराम और किसी को कष्ट देता है? क्योंकि ईश्वर न्यायकारी है इसलिए इनके हालात में अन्तर का कारण भी इनके ही कर्मों को होना चाहिए और क्योंकि इनके वर्तमान जन्म में ऐसे कर्म दिखाई नहीं देते तो ज़रुर इस जन्म से पहले कोई जन्म रहा होगा। यह सिर्फ़ एक
अटकल है हक़ीक़त नहीं।
एक मनुष्य जब कोई पाप या पुण्य का कर्म करता है तो उसके हरेक कर्म का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है और उसके कर्म से प्रभावित होकर दूसरे बहुत से लोग भी पाप पुण्य करते हैं और फिर उनका प्रभाव भी दूसरों पर और भविष्य की नस्लों पर पड़ता है। यह सिलसिला प्रलय तक जारी रहेगा। इसलिये प्रलय से पहले किसी मनुष्य के कर्म के पूरे प्रभाव का आकलन संभव नहीं है। लोगों को प्रलय से पहले उनके कर्मों का बदला देना सम्भव नहीं है और यदि उन्हें बदला दिया जाता है तो किसी एक के साथ भी न्याय न हो पाएगा।
फिर भी अगर मान लिया जाए कि एक पापी मनुष्य को उसके पापों की सज़ा भुगतने के लिए पशु-पक्षी आदि बना दिया जाता है तो जब उसकी सज़ा पूरी हो जायेगी तो उसे किस योनि में जन्म दिया जाएगा? क्योंकि मनुष्य योनि तो बड़े पुण्य के फलस्वरूप मिलती है। इसलिए मनुष्य योनि में जन्म संभव नहीं है और पशु-पक्षी आदि की योनियों में उसे भेजना भी न्यायोचित नहीं है क्योंकि वह अपने पापकर्मों की पूरी सज़ा भुगत चुका है।
(54) मोक्ष प्राप्त आत्मा के जन्म के विषय में भी यही प्रश्न उठता है। एक निश्चित अवधि तक मुक्ति सुख भोगने के बाद मोक्ष प्राप्त आत्मा जन्म लेती है, लेकिन प्रश्न यह है कि किस योनि में लेती है?
(55) पाप उसने किया नहीं था और पुण्य का फल भी उसके पास अब शेष नहीं था। नियमानुसार ईश्वर उसे न तो पशु-पक्षी बना सकता है और न ही मनुष्य। क्या न्यायकारी परमेश्वर जीव को बिना किसी कर्म के पशु-पक्षी या मनुष्य योनि में जन्म दे सकता है?
(56) यदि यह मान भी लिया जाये कि दोनों को नई शुरूआत मनुष्य योनि से कराई जाएगी तो फिर बचपन में जब वे भूख, प्यास और मौसम आदि के स्वाभाविक कष्ट झेलेंगे तो इन कष्टों के पीछे क्या कारण माना जाएगा?, क्योंकि पाप तो दोनों के ही शून्य हैं।
इस तरह आवागमन की कल्पना से जिस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की गई। वह समस्या तो ज्यों की त्यों रही और वास्तव में मरने के बाद पाप पुण्य का फल जिस तरीक़े से मिलता है, उसे न जानने के कारण जीव को बहुत सा कष्ट उठाना पड़ता है।
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
वैदिक धर्म में स्वर्ग-नर्क की मान्यता पाई जाती है। बाद में आवगमन की कल्पना प्रचलित की गई। स्वामी जी ने स्वर्ग-नर्क को अलंकार बताया और आवगमन की कल्पना का प्रचार किया। उन्होंने बताया कि मोक्ष प्राप्त आत्मा भी एक निश्चित अवधि तक मुक्ति-सुख भोगने के बाद जन्म लेती है और पापी मनुष्यों की आत्माएं भी कर्मानुसार अलग-अलग योनियों में जन्म लेती हैं।

आवागमन की कल्पना सिर्फ इस अटकल पर खड़ी है कि सब बच्चे बचपन में एक जैसे नहीं होते। कोई राजसी शान से पलता है और कोई ग़रीबी, भूख और बीमारी का शिकार हो जाता है। ऐसा क्यों होता है? क्या ईश्वर अन्यायी है, जो बिना कारण ही किसी को आराम और किसी को कष्ट देता है? क्योंकि ईश्वर न्यायकारी है इसलिए इनके हालात में अन्तर का कारण भी इनके ही कर्मों को होना चाहिए और क्योंकि इनके वर्तमान जन्म में ऐसे कर्म दिखाई नहीं देते तो ज़रुर इस जन्म से पहले कोई जन्म रहा होगा। यह सिर्फ़ एक
अटकल है हक़ीक़त नहीं।
एक मनुष्य जब कोई पाप या पुण्य का कर्म करता है तो उसके हरेक कर्म का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है और उसके कर्म से प्रभावित होकर दूसरे बहुत से लोग भी पाप पुण्य करते हैं और फिर उनका प्रभाव भी दूसरों पर और भविष्य की नस्लों पर पड़ता है। यह सिलसिला प्रलय तक जारी रहेगा। इसलिये प्रलय से पहले किसी मनुष्य के कर्म के पूरे प्रभाव का आकलन संभव नहीं है। लोगों को प्रलय से पहले उनके कर्मों का बदला देना सम्भव नहीं है और यदि उन्हें बदला दिया जाता है तो किसी एक के साथ भी न्याय न हो पाएगा।
फिर भी अगर मान लिया जाए कि एक पापी मनुष्य को उसके पापों की सज़ा भुगतने के लिए पशु-पक्षी आदि बना दिया जाता है तो जब उसकी सज़ा पूरी हो जायेगी तो उसे किस योनि में जन्म दिया जाएगा? क्योंकि मनुष्य योनि तो बड़े पुण्य के फलस्वरूप मिलती है। इसलिए मनुष्य योनि में जन्म संभव नहीं है और पशु-पक्षी आदि की योनियों में उसे भेजना भी न्यायोचित नहीं है क्योंकि वह अपने पापकर्मों की पूरी सज़ा भुगत चुका है।
(54) मोक्ष प्राप्त आत्मा के जन्म के विषय में भी यही प्रश्न उठता है। एक निश्चित अवधि तक मुक्ति सुख भोगने के बाद मोक्ष प्राप्त आत्मा जन्म लेती है, लेकिन प्रश्न यह है कि किस योनि में लेती है?
(55) पाप उसने किया नहीं था और पुण्य का फल भी उसके पास अब शेष नहीं था। नियमानुसार ईश्वर उसे न तो पशु-पक्षी बना सकता है और न ही मनुष्य। क्या न्यायकारी परमेश्वर जीव को बिना किसी कर्म के पशु-पक्षी या मनुष्य योनि में जन्म दे सकता है?
(56) यदि यह मान भी लिया जाये कि दोनों को नई शुरूआत मनुष्य योनि से कराई जाएगी तो फिर बचपन में जब वे भूख, प्यास और मौसम आदि के स्वाभाविक कष्ट झेलेंगे तो इन कष्टों के पीछे क्या कारण माना जाएगा?, क्योंकि पाप तो दोनों के ही शून्य हैं।
इस तरह आवागमन की कल्पना से जिस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की गई। वह समस्या तो ज्यों की त्यों रही और वास्तव में मरने के बाद पाप पुण्य का फल जिस तरीक़े से मिलता है, उसे न जानने के कारण जीव को बहुत सा कष्ट उठाना पड़ता है।
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
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