हक़ीक़त यह है कि दुःख का कारण हमेशा पापाचरण नहीं होता। सुख-दुख का मूल पिछले जन्म का आचरण मानना ग़लत है। योग से रोग ठीक होने का दावा करने वाले बाबा रामदेव के गुरू जी भी काफ़ी वृद्ध हो गए थे। लापता होने से पहले वह भी काफ़ी समय से बीमार चल रहे थे। जब पिछले दिनों स्वयं बाबा रामदेव जी ने आमरण अनशन किया तो चंद ही दिनों में उनकी हालत बिगड़ गई और उनकी जान जाने की नौबत तक आ गई। इस घोर कष्ट के पीछे उनका कोई पूर्व जन्म का पापाचरण नहीं था बल्कि खाना-पीना छोड़ देना था। उचित इलाज के साथ जैसे ही उन्होंने खाना-पीना ्युरू किया। उनका कष्ट दूर हो गया।
यह तो सामने की बात थी लेकिन कुछ कष्टों का कारण ज़रा दूर होता है। कई बार कष्टों का कारण वंशानुगत भी होता है।
स्वामी विवेकानन्द के पिता जी को मधुमेह ;क्पंइमजमेद्ध की बीमारी थी। स्वामी जी भी इस बीमारी के शिकार हो गए। उन्हें मधुमेह के अलावा लिवर और गुर्दे की बीमारियों, मलेरिया, माइग्रेन, अनिद्रा और दिल की बीमारियों सहित 31 बीमारियों से जूझना पड़ा था। जिनका कारण मशहूर बांग्ला लेखक ्यंकर ने अपनी पुस्तक ‘द मॉन्क ऐज़ मैन’ में बताया है। उन्होंने लिखा है कि स्वामी विवेकानन्द सन 1887 ई. में अधिक तनाव और भोजन की कमी के कारण काफ़ी बीमार हो गए थे।
(आधार ः हिन्दी दैनिक द सी एक्सप्रेस दिनांक 7 जनवरी 2013 पृ. 2 की रिपोर्ट)
व्यक्ति जिस समाज में रहता है। उस समाज का सामूहिक आचरण भी व्यक्ति के सुख-दुख का कारण बनता है और विगत समाज के लोग जो कुछ अच्छा या बुरा करके गए हैं, उसका परिणाम भी आज मौजूद लोगों को भोगना पड़ता है। द्वितीय विश्वयुद्ध जिन जापानियों ने लड़ा था। वे आज मौजूद नहीं हैं लेकिन उन पर जो प्रतिबन्ध लगाए गए थे वे आज की जापानी नस्ल पर भी लगे हुए हैं। नागासाक़ी और हिरोशिमा में आज भी विकलांग बच्चे पैदा होते हैं।
एक व्यक्ति एक विशाल समाज का अंग है। उस समाज का एक अतीत भी है। उस अतीत के अच्छे बुरे कर्मों का अच्छा या बुरा असर आज भी हम पर पड़ रहा है। कई बार परिवर्तन भी कष्ट का कारण बनता है।
विशेषकर तब, जबकि समाज के सदस्यों में मूर्तिपूजा, नशा, जुआ, दहेज और अन्याय का चलन आम हो जाए और उन्हें परिवर्तन के लिए कहा जाए। यदि वे अपनी परम्पराओं में परिवर्तन करते हैं तो उन्हें अवश्य ही कई तरह के कष्ट का सामना करना पड़ेगा और यदि वे नहीं बदलते तो वे उपदेशक को अवश्य कष्ट देंगे। इस रहस्य को जान लिया जाता तो अपने कष्टों के लिए अपने किसी अज्ञात पूर्वजन्म को मानने की ज़रूरत ही न पड़ती। जिसका ज़िक्र वेदों में कहीं भी नहीं है।
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
--
पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html
यह तो सामने की बात थी लेकिन कुछ कष्टों का कारण ज़रा दूर होता है। कई बार कष्टों का कारण वंशानुगत भी होता है।
स्वामी विवेकानन्द के पिता जी को मधुमेह ;क्पंइमजमेद्ध की बीमारी थी। स्वामी जी भी इस बीमारी के शिकार हो गए। उन्हें मधुमेह के अलावा लिवर और गुर्दे की बीमारियों, मलेरिया, माइग्रेन, अनिद्रा और दिल की बीमारियों सहित 31 बीमारियों से जूझना पड़ा था। जिनका कारण मशहूर बांग्ला लेखक ्यंकर ने अपनी पुस्तक ‘द मॉन्क ऐज़ मैन’ में बताया है। उन्होंने लिखा है कि स्वामी विवेकानन्द सन 1887 ई. में अधिक तनाव और भोजन की कमी के कारण काफ़ी बीमार हो गए थे।
(आधार ः हिन्दी दैनिक द सी एक्सप्रेस दिनांक 7 जनवरी 2013 पृ. 2 की रिपोर्ट)
व्यक्ति जिस समाज में रहता है। उस समाज का सामूहिक आचरण भी व्यक्ति के सुख-दुख का कारण बनता है और विगत समाज के लोग जो कुछ अच्छा या बुरा करके गए हैं, उसका परिणाम भी आज मौजूद लोगों को भोगना पड़ता है। द्वितीय विश्वयुद्ध जिन जापानियों ने लड़ा था। वे आज मौजूद नहीं हैं लेकिन उन पर जो प्रतिबन्ध लगाए गए थे वे आज की जापानी नस्ल पर भी लगे हुए हैं। नागासाक़ी और हिरोशिमा में आज भी विकलांग बच्चे पैदा होते हैं।
एक व्यक्ति एक विशाल समाज का अंग है। उस समाज का एक अतीत भी है। उस अतीत के अच्छे बुरे कर्मों का अच्छा या बुरा असर आज भी हम पर पड़ रहा है। कई बार परिवर्तन भी कष्ट का कारण बनता है।
विशेषकर तब, जबकि समाज के सदस्यों में मूर्तिपूजा, नशा, जुआ, दहेज और अन्याय का चलन आम हो जाए और उन्हें परिवर्तन के लिए कहा जाए। यदि वे अपनी परम्पराओं में परिवर्तन करते हैं तो उन्हें अवश्य ही कई तरह के कष्ट का सामना करना पड़ेगा और यदि वे नहीं बदलते तो वे उपदेशक को अवश्य कष्ट देंगे। इस रहस्य को जान लिया जाता तो अपने कष्टों के लिए अपने किसी अज्ञात पूर्वजन्म को मानने की ज़रूरत ही न पड़ती। जिसका ज़िक्र वेदों में कहीं भी नहीं है।
-- --Book Download Link--
http://www.mediafire.com/download/ydp77xzqb10chyd/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition.pdf --
डा. अनवर जमाल की पुस्तक "'स्वामी दयानंद जी ने क्या खोजा? क्या पाया?" परिवर्धित संस्करण इधर से डाउनलोड की जा सकती है --पुस्तक में108 प्रश्न नंबर ब्रेकिट में दिये गए हैं
https://archive.org/stream/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-published-book/swami-dayanand-ji-ne-kiya-khoja-kiya-paya-second-edition#page/n0/mode/2up
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पुस्तक युनिकोड में चार पार्ट में इधर भी है
http://108sawal.blogspot.in/2015/04/swami-dayanand-ne-kiya-khoja-kiya-paya.html